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________________ आदर्श जीवन। हाथ फिराया और कहा,-"यदि सच्चे गुरुभक्त हों तो तुम्हारे ही समान हों । तुमने स्वर्गवासी गुरुदेवके इस कथनको,-कि पंजाबकी सम्भाल वल्लभ लेगा, सत्य कर दिखाया है। जाओ ! व्याख्यानके पाट पर बैठ कर श्रीसंघको थोड़ासा व्याख्यान सुनाओ! कई दिनोंसे श्रावकोंको तुम्हारी जबानसे जिनवचनामृत पानकरनेका अवसर नहीं मिला है, आज पिलाकर उन्हें धन्य बनाओ।" ___ आपने बद्धाञ्जलि होकर 'तहत्ति' कहा और व्याख्यान मंडपमें जाकर श्रोताओंको उपदेशामृत पिलाया । जब श्रावकोंको यह मालूम हुआ कि आजसे नित्य प्रति उन्हें व्याख्यान सुननेका सौभाग्म प्राप्त होगा तब उन्होंने, चौवीस महाराजकी जय, श्रीआत्मारामजी महाराजकी जय, श्रीमद्विजयकमलमूरि महाराजकी जय ! श्रीउपाध्यायजी महाराजकी जय ! श्रीचरित्रविजयजी महाराकी जय! श्रीवल्लभविजयजी महाराजकी जय ! इस तरह जय ध्वनिके साथ अपनी प्रसन्नता प्रकट की। __ आप कई दिनों तक निरंतर व्याख्यान देते रहे। एक दिन आपने आचार्यश्रीसे निवेदन किया कि, गुजराँवालाके शास्त्रार्थकी कार्रवाईका संग्रह होना आवश्यक है । इस लिए यदि आप व्याख्यानके लिए किन्हीं दूसरे मुनि महाराजको आज्ञा फर्मावें और मुझे इस कार्यको करनेकी आज्ञा फर्मावें तो उत्तम हो।" __ आचार्यश्रीने आपकी योग्य प्रार्थनाको स्वीकार किया और व्याख्यानके लिए श्रीललितविजयजीको हुक्म दे दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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