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आदर्श जीवन।
घड़ि घड़ि पल पल गुरुजी ध्याऊँ, मनमें वाणीसे गुण गाऊँ । कायासे निज शीस नमाऊँ, रूप पराया छारना जी ॥ वा० ॥४॥ पूर्ण कृपा श्रीगुरु हो जावे, आतम परमातम पद पावे । विजयानंद वधाई गावे, आतम वल्लभ तारना जी || वा० ॥ ५॥
आपने विनौलीसे खिवाईकी तरफ विहार किया । अपने साथ मुनि श्रीसोहनविजयजीको रक्खा और दूसरे मुनियोंको दिल्लीकी तरफ रवाना कर दिया । वहाँ गुजराँवालासे लाला जगन्नाथजी आपके नामके दो पत्र लेकर आये । उनमेंसे एक १०८ श्रीआचार्य महाराज श्रीविजयकमल मूरिजी तथा उपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजीकी तरफ़का था और दूसरा था श्रीसंघ गुजराँवालाकी तरफ़का ।
उनमेंसे श्रीसंघ गुजराँवालाकी नकल-जो हमें प्राप्त हो सकीयहाँ दी जाती है । यह पत्र उर्दूमें लिखा हुआ था।
ता० ३०-५-१९०८ श्री आत्मानंद जैनश्वेतांबर कमिटी,
गुजराँवाला (पंजाब) " श्री श्री श्री मुनि महाराज वल्लभविजयजी आदि मुनि महाराज, अजतरफ श्रीसंघ गुजराँवालाकी १०८ दफा बन्दना चरनोंमें कबूल हो । अर्ज यह है कि, इस वक्त ढूंढियोंने दूसरी कौमोंयानी खतरी, बिराहमन, आर्यासमाज वगैराको बहोत भड़काया है । जिसके जवाबमें मवरखा २९ मई को बवक्त
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