SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ आदर्श जीवन। घड़ि घड़ि पल पल गुरुजी ध्याऊँ, मनमें वाणीसे गुण गाऊँ । कायासे निज शीस नमाऊँ, रूप पराया छारना जी ॥ वा० ॥४॥ पूर्ण कृपा श्रीगुरु हो जावे, आतम परमातम पद पावे । विजयानंद वधाई गावे, आतम वल्लभ तारना जी || वा० ॥ ५॥ आपने विनौलीसे खिवाईकी तरफ विहार किया । अपने साथ मुनि श्रीसोहनविजयजीको रक्खा और दूसरे मुनियोंको दिल्लीकी तरफ रवाना कर दिया । वहाँ गुजराँवालासे लाला जगन्नाथजी आपके नामके दो पत्र लेकर आये । उनमेंसे एक १०८ श्रीआचार्य महाराज श्रीविजयकमल मूरिजी तथा उपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजीकी तरफ़का था और दूसरा था श्रीसंघ गुजराँवालाकी तरफ़का । उनमेंसे श्रीसंघ गुजराँवालाकी नकल-जो हमें प्राप्त हो सकीयहाँ दी जाती है । यह पत्र उर्दूमें लिखा हुआ था। ता० ३०-५-१९०८ श्री आत्मानंद जैनश्वेतांबर कमिटी, गुजराँवाला (पंजाब) " श्री श्री श्री मुनि महाराज वल्लभविजयजी आदि मुनि महाराज, अजतरफ श्रीसंघ गुजराँवालाकी १०८ दफा बन्दना चरनोंमें कबूल हो । अर्ज यह है कि, इस वक्त ढूंढियोंने दूसरी कौमोंयानी खतरी, बिराहमन, आर्यासमाज वगैराको बहोत भड़काया है । जिसके जवाबमें मवरखा २९ मई को बवक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy