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________________ १६८ आदर्श जीवन | आराम हैं । वहाँसे रवाना होकर संघ सहित आप मुहाना पहुँचे । यह मेरठ से सत्रह माइल है । अगले दिन संघ हस्तिनापुर पहुँचा और (सं० १९६४ फाल्गुन सुदी १३ सोमवारके दिन ) यात्रा कर अपनेको कृतकृत्य मानने लगा । आपके यात्रार्थ जाने के समाचार सुन बिनोली, खिंवाई, तीतरवाड़ा, लुधियाना, अंबाला और बंबई आदि स्थानोंके भी करीब सौ सवा सौ श्रावक श्राविकाएँ यात्रार्थ आ गये थे । स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरिजी महाराजकी बनाई हुई सत्रह भेदी पूजा पढ़ाई गई । दूसरे दिन दिल्लीकी श्राविकाओंने साधर्मीवत्सल किया । वहाँ पर हमारे चरित्रनायकने पाँच स्तवन बनाये थे उनमेंसे एक यहाँ उद्धृत किया जाता है । स्तवन जय बोलो जय बोलो मेरे प्यारे तीरथकी जय बोलो || अंचल || हस्तिनापुर तीरथ सारा, कल्याणक हुए जहाँ बारा । तीर्थंकर तिग मनमें धारा, धाराजी धारा सुखकर्तारा ॥ ती० ॥ १ ॥ शांतिनाथ प्रभु शांतिकारी, कुंथुनाथ जिनवर बलिहारी । श्रीअरनाथके जाऊँ वारी, वारी जी वारी वार हजारी ॥ ती० ॥ २ ॥ प्रथम जिनेसर पारणो कीनो, इक्षुरस श्रेयांसे दीनो । मुक्तिरस बदले में लीनो, लीनो जी लीना निज गुणचीनो ॥ ती० ॥३॥ उन्नीसौ चौसठ के बरसे, दिल्लीको संघ आयो हरसे । धन आतम जे तीरथ फरसे, फरसे जी फरसे वल्लभ तरसे ॥ ती० ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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