________________
१५८
आदर्श जीवन।
उन्होंने आज्ञा हुआ; मगर
होते हुए
प्रबल है। उस समय समाधिमें प्रतिष्ठा होनेका योग न था, इसी लिए वहाँ प्लेगका प्रचंड रूपसे दौरा शुरू हो गया । शहरमें भगदड़ मच गई । श्रावकोंने बड़े उत्साहसे प्रतिष्ठाकी तैयारी शुरू की थी, उनका उत्साह टूटने लगा। आपने अवसर देखकर श्रावकोंको अभी प्रतिष्ठा न करने के लिए समझाया । श्रावकोंको बडा दुःख हुआ; मगर कोई उपाय नहीं था । लाचार उन्होंने आज्ञा मानी । आप भी वहाँसे पपनाखा होते हुए रामनगर पधारे ।
वहाँ आपने श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथकी यात्रा की । वहाँ लाला जगन्नाथ भोलेशाह नाम के एक भक्त श्रावक हैं । उनके पास एक सब्ज पन्नाकी श्रीस्तंभन पार्श्वनाथ भगवानकी प्रतिमा है । वह बड़ी ही भव्य और वर्तमानकालके लिए तो सवथा अलभ्य है । उसकी वंदना कर आपने अपना कल्याण किया ।
रामनगरसे विहार हुआ। रस्तमेंसे मुनि श्रीचारित्रविजयजी, मुनिश्रीरविविजयजी और मुनि श्रीललितविजयजी तो गुजरांवाले गये और आप किलेदीदारसिंह पधारे। वहाँसे श्रीसंघ खानगाह डोंगराकी विनती होनेसे खानगाह पधारे। कुछ दिन वहाँ ठहरकर लाहोर पधारे । लाहोर आने पर समाचार मिले कि गुजराँवालामें अब भी प्लेग है। इधर चौमासा भी पास आ गया था इस लिए आप अमृतसरके लिए रवाना हुए । क्योंकि श्रीसंघ अमृतसरकी चौमासेके लिए पहले ही विनती हो चुकी थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org