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आदर्श जीवन ।
सिफत गुरुकी कथाकी जितनी, बयान करूँ बुद्धि कहाँ इतनी । मैं मूरख नादान कहाँ मुझसे वरणी जाये ॥ १४ ॥ धन० ॥ धन सतगुरु धन तेरी माया, भूलोंको रस्ता बतलाया । दास ' दसौंदी ' तरेंगे वे नर, सतगुरु जिनध्याये ॥ १५ ॥ धन० ॥ रायकोटसे आप सुनामके लिए रवाना हुए थे; मगर मार्ग में मुनि श्री सोहनविजयजीके बीमार हो जानेसे, कोटले चले गये और फिर वहाँसे लुधियाने पधारे ।
वहाँ जानेपर समाचार मिले कि, रामनगरमें श्री - चारित्रविजयजी महाराज बीमार हैं। आपने तत्काल ही उनकी सेवाके लिए सोहनविजयजी और कस्तूरविजयजीको भेज दिया | श्रीचारित्रविजयजीके आरोग्य होजानेपर ये दोनों फिर वापिस लुधिआनामें आ मिले ।
सं. १९६३ का बीसवाँ चौमासा आपने लुधियानेहीमें किया था । यहाँ आपके साथ ( १ ) मुनि महाराज श्रीहीरविजयजी, (२) मुनि श्री उद्योतविजयजी महाराज ( ३ ) श्रीस्वामी सुमतिविजयजी महाराज ( ४ ) श्रीसोहन विजयजी महाराज ( ५ ) श्रीकपूरविजयी महाराज ( ६ ) श्रीकस्तूरविजयजी महाराज और (७) श्रीउमेदविजयजी महाराज थे ।
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आप अन्यत्र चौमासा करनेके लिए, सं. १९६३ चैत्र सुदी ११ बृहस्पतिवारको, लुधियानेसे विहार करनेवाले थे; मगर क्षेत्रस्पर्शना चौमासेमें लुधियानेकी थी; वहाँके प्रेमी श्रोताओंके पुण्यका जोर था इसलिए आप वहाँसे विहार न कर
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