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________________ आदर्श जीवन । - - आहोजी संपदा सुख पावे । सुख पावे सुख पावे जो गावे प्रभुगुण बारी ॥ शां० ॥ १० ॥ आहोजी वल्लभ गुण गावे । गुणगावे गुणगावे चित आतम-आनंद धारी ॥ शां० ॥ ११ ॥ सं० १९६१ का अठारहवाँ चौमासा सामानेमें समाप्त कर आप नाभा, मालेरकोटला होते हुए रायकोट पधारे । रायकोटमें एक भी श्वेताम्बर श्रावक नहीं था। सभी स्थानकवासी थे। इस लिए आहार पानीके लिए आपको बड़ी तकलीफ होती थी। तो भी आप एक मास तक इस हेतुसे रहे कि यहाँ किसी न किसी तरह धर्म का बीज बोया जाय और कुछ श्रावक हो जायँ । आपके कष्ट सहन और धर्मोपदेशका शुभ फल भी मिला । वहाँसे विहार कर लुधियाने होते हुए और लोगोंको धर्मामृत पिलाते हुए आप सं० १९६२ का उन्नीसवाँ चौमासा करनेके लिए जीरे पधारे। वहाँ पंन्यास सुंदरविजयजी, पं० ललितविजयजी और पं० सोहनविजयजी गुजरातसे विहार करते हुए आपके पास १--ये ओसवाल थे। इनका नाम वसंतराय था। जम्मू घर था। इन्होंने गेंडेरायजी स्थानकवासी साधुके पाससे स. १९६० में सामानामें दीक्षा ली । मगर पीछेसे इनकी स्थानकवासियोंके धर्मसे श्रद्धा उठ गई और हमारे चरित्रनायकके पास दीक्षा लेनेके लिए अम्बाले गये। आपने फाया:-"अभी ठहरो ।" कुछ दिनके बाद अज्ञातकारणसे वे वापिस पूज सोहनलालजीके पास दिल्ली में चले गये । सामानेके शास्त्रार्थके समय ये पूजजीके साथ थे। उस समय फिरसे इनकी इच्छा संवेगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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