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________________ आदर्श जीवन । चार दूसरे स्थानकवासियोंके साथ गये । उन्हें सारी बातें सुनाई अपनी प्रतिज्ञाका हाल भी कहा । इच्छा न होते हुए भी पूज सोहनलालजी १४ साधुओं सहित सामाने आये । सारे शहरमें पवनवेग से यह बात फैल गई कि स्थानकवासियोंका और श्वेतांबरोंका शास्त्रार्थ होनेवाला है । लाला सुरजनमलने पूज सोहनलालजी से कहा :- “ महाराज ! अब शास्त्राथ की तैयारी होनी चाहिए। " १३५ पूज सोहनलालजीने जवाब दिया- “ श्रावकजी ! शास्त्रार्थ किससे करनेको कहते हो इसके गुरु आत्मारामजी भी जब हमारे प्रश्नोंका जवाब न दे सके तब यह तो देही कैसे सकता है ? " सुरज ० - यह तो और भी अच्छी बात होगी । अगर वे हार जायँगे तो तत्काल ही स्थानकवासी हो जायँगे । बात बड़ी मीठी, मनमें गुदगुदी पैदा करनेवाली थी; मगर थी असाध्य । पूजजी अपनी स्थिति समझते थे । यदि उन्हें रुपये में से एक आना भी विश्वास होता कि, हम वल्लभविजयजीसे शास्त्रार्थमें जीत जायँगे तो वे इस स्वर्ण अवसरको कभी न छोड़ते । मगर उन्हें तो रत्तीभर भी विश्वास नहीं था । इस सौदे में उन्हें तो हानि ही हानि दिखती थी । इसलिए बोले:" एक प्रश्न जाकर वल्लभविजयजीसे पूछो । वे इसका उत्तर बिलकुल न दे सकेंगे । प्रश्न यह है, 'आत्मारामजीने जैनतत्वादर्शके बारहवें परिच्छेदमें, महानिशीथ सूत्रके तीसरे अध्ययनका पूजाके विषयका जो पाठ दिया है वह सूत्रमें कहाँ लिखा है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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