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________________ आदर्श जीवन । लाके एक सज्जन शामिल हुए थे। कारण पंजाबका श्रीसंघ उस समय जंडियालेमें प्रतिष्ठा उत्सव पर गया हुआ था । १०८ श्रीकमलविजयजी महाराजकी इच्छा थी कि उपाध्याय पद हमारे चरित्रनायकको दिया जाय; मगर हमारे चरित्रनायकने उसे लेना नामंजूर किया । १२६ इस साल स्थानकवासियोंके पूज्य श्रीसोहनलालजी भी होशियारपुरहीमें थे । उनके साथ शास्त्रार्थकी बात छिड़ी थी; मगर अन्तमें वह ढीली पड़ गई । वे शास्त्रार्थ करनेको तैयार न हुए । X X X चौमासा समाप्त होने पर आप होशियारपुर से विहारकर, गढ़दिवाला, उरमड, अइयापुर, टाँडा, मियानी आदि स्थानों में होते हुए जंडियाले पधारे । आपके पधारनेका हेतु था यहाँ होनेवाली मंदिरजीकी प्रतिष्ठा । माघ सुदी १३ सं० १९५७ को प्रतिष्ठा हुई । प्रतिष्ठाका सारा काम आप हीकी देखरेख में हुआ था । इस अवसर पर आपने पचास जिन बिंबोंकी अंजनशलाका भी की थी । स्वर्गवासी आचाश्रीने अपनी देखरेखमें आपको जो कार्य सिखाया था वह आज सफल हो गया । x यहाँ प्रतिष्ठा महोत्सव पर समस्त पंजाबका श्रीसंघ आया था । उससे आपने पाइफंडको समृद्ध बनानेके लिए एक फंड जारी कराया । संघने अपनी शक्तिके अनुसार उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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