SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । वृद्ध मुनिराज बाबाजी महाराज महाराज श्रीकुशलविजयजी, मुनि श्री चारित्रविजयजी, मुनि श्री प्रमोदविजयजी, मुनि श्रीहीरविजयजी और मुनि श्रीउद्योतविजयजी, स्वामीजी श्रीसुमतिविजयजी आदि मुनिगणका आग्रह था कि, हम वल्लभविजयजीहीको आचार्य बनायेंगे और मानेंगे । उन्हें बड़ी कठिनता से आपने समझाया और फिर एक सम्मति - पत्र लिख उस पर आपने सबसे पहले सही की, सब साधुओंकी सही करवाई और वह कान्तिविजयजी महाराजके पास पाटन भेज दिया । वाह ! क्या त्याग है ? संसारमें धन-दौलत पुत्र कलत्र और गृहस्थाश्रम छोड़ देना सरल है मगर मान - बड़ाईका त्याग करना, बड़ा ही कठिन काम है। उसमें भी आचार्यके समान दुष्प्राप्य पदवीको - जो विरलोंहीको मिला करती है - छोड़ देना वह भी ऐसी दशामें जब कि अपने पक्षमें बहु सम्मति हो छोड़ देना, एक दुःसाध्य साधना है । मगर हमारे चरित्रनायकने उसको साधा; एकताके सूत्रमें सबको बाँधे रखनेके लिए आपने यह महान त्याग किया । इस सम्मतिपत्रके पहुँचनेपर सं. १९५७ की माघ सुदी १५ के दिन पाटन (गुजरात) में १०८ श्री कमलविजयजी महाराजको सूरि पद प्रदान कियागया । १२५ पाटन पदवीप्रदान महोत्सव के समय पंजाब श्रीसंघ से कोई भी श्रावक सम्मिलित न हो सका था । केवल गुजराँवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy