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आदर्श जीवन।
बालमित्र और पूर्ण विश्वासपात्र लाला जीवारामजी मालेरी आपके ऐसे भक्त बने कि, सिरपर राजकीय कामोंका अत्यंत बोझा रहने पर भी जबतक वे घंटा आध घंटा आपके पास न आते थे तबतक उन्हें चैन नहीं पड़ता था। वहाँके प्रसिद्ध व्यापारी लाला फतेचंदजी धुरांटोंवाले भी आपके ऐसे ही भक्त बन गये । इनके अलावा और भी अनेक लोग हमेशा आपके. वचनामृतका पान करने आते थे।
नाभासे विहार कर आप सामाना, पटियाला, अंबाला होते. हुए रोपड और रोपड़से होशियारपुर पधारे। यहाँके श्रीसंघने स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरिजी ( आत्मारामजी) महाराजकी एक प्रतिमा बनवाई थी। उसकी प्रतिष्ठा करानेहीके लिए, श्रीसंघके अत्यंत आग्रहसे, आप यहाँ पधारे थे। सं० १९५७ के वैशाख सुदी ६ के दिन बड़े समारोह एवं शान्तिके साथ प्रतिष्ठाका कार्य समाप्त हुआ।
सं० १९५७ का चौदहवाँ चौमासा आपका होशियार पुरमें हुआ। पंजाबके श्रीसंघने आपको इस साल आचार्य पदवी देना निश्चित कर आपसे निवेदन किया । आपने झटपट इन्कार कर दिया।
श्रीसंघने कहा:-" हम तो स्वर्गीय गुरु महाराजकी आज्ञाका पालन करना चाहते हैं । हमने जब पूछा कि, गुरुवर्य आपः हमें किसके भरोसे छोड़ कर जाते हैं, तब गुरुदेवने फर्माया
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