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आदर्श जीवन ।
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स्थानोंमें लोगोंको विशेष रूपसे धर्ममें लगाते हुए मालेर कोटला पधारे। __ सं० १९५६ का तेरहवाँ चौमासा आपका मालेरकोटलामें हुआ। व्याख्यानमें आप सम्यक्त्व सप्ततिका और सूत्रकृतांग वाँचते रहे । यहाँ मुन्शी अब्दुल्लतीफ़ नामके एक मुसलमान सज्जन आपके गाढे भक्त बन गये। धर्मचर्चामें उन्हें बड़ा आनंद आता था; इस लिए वे हमेशा आते और दुपहरका प्रायः समय आप उनके साथ धर्मचचोंमें ही बिताते ।
उन्होंने एक दिन हाथ जोड़कर प्रार्थना की,-" महाराज आप जैसे भावड़ोंके गुरु हैं वैसे ही मेरे भी गुरु हैं। फिर आपभेदभाव क्यों रखते हैं ? मैं आपसे मेरे घरका आहार लेनेके लिए नहीं कहता। मेरी तो सिर्फ इतनी ही अर्ज है कि आप मेरी गायोंका एक दिन दुग्ध ग्रहण करें। आप पधारेंगे तब मैं हिन्दुसे गौ दुहा दूंगा।" ___ आपने हँसकर कहा:-" मुन्शीजी ! आप जानते हैं कि हमारे लिए जो पदार्थ प्रस्तुत किया जाता है वह हम नहीं लेते । मुझे तो आपकी भक्ति दूध क्या अमृतसे भी ज्यादा प्यारी है।"
चौमासा समाप्त होने पर आप मालेरकोटलासे नाभा पधारे। यद्यपि यहाँ श्रावकोंके घर थोड़े थे तथापि आपकी वाणीमें वह जादू है कि जो आपका एक बार उपदेश सुन लेता है वह हमेशाके लिए आपका भक्त बन जाता है। नाभानरेशके
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