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________________ आदर्श जीवन। ~ ~ ~ ~ प्रसन्नता है इतनी अन्य किसीको होगी या नहीं ज्ञानी महाराज जानें।" इससे पाठकोंको विदित होगा कि, १०८ श्रीकांतिविजयजी महाराज आपपर कितनी श्रद्धा और कितना प्रेम रखते थे और अब भी रखते हैं। इसकी साक्षी आपको वह पत्र देगा जो उन्होंने, अभी गत वर्ष हमारे चरित्रनायकको श्रीसंघने लाहोरमें जब आचार्यपद पर स्थापित किया था, उस समय हमारे चरित्रनायकके पास भेजा था। वह पत्र हम पदवीप्रदानके समयकी अन्यान्य घटनाओंके साथ देंगे । वह पत्र हरेक आचार्य महाराजके एवं हरेक मुनिराजके पढ़ने और मनन करने योग्य है। कुछ समय बाद आचार्यश्री जीरासे विहारकर पट्टी पधारे। श्रीकांतिविजयजी महाराजने अपने शिष्यों सहित बीकानेरकी तरफ विहार किया और श्रीवीरविजयजी महाराज अपने शिष्य सहित वहीं रहे। __ श्रीआचार्य महाराजके पधारने पर पट्टीके श्रीसंघमें बड़ा उत्साह फैला । आचार्यश्रीकी इच्छानुसार प्रतिष्ठाका प्रबंध होने लगा। आमंत्रण पत्रिकाएँ भेजी गई। अनेक लोग आये । बड़ी धूमधामसे सं० १९५१ के माघ सुदी १३ के दिन आचार्यश्रीने श्रीपार्श्वनाथ स्वामीको गद्दीपर विराजमान किया अर्थात् वासक्षेप किया । इसी मुहूर्तमें पचास नवीन प्रतिमाओंकी नवीन प्रतिष्ठा-अंजनशलाका भी आचार्यश्रीने की थी । इसमें यथाशक्ति हमारे चरित्रनायकने आचार्यश्रीका हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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