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________________ आदर्श जीवन । एक दिनकी बात है। श्रीकांतिविजयजी महाराज और हमारे चरित्रनायक एक तरफ बैठे कुछ शास्त्रीय चर्चा कर रहे थे । इतनेहीमें आचाय महाराज पधार गये। दोनों उठे और हाथ जोड़ सिर झुका सामने खड़े हो रहे । ___ आचार्यश्रीने मुस्कुराकर परिहासके तौरपर श्रीकांतिविजयजी महाराजसे कहा:--" देखना मेरे तैयार किये हुए साधुको कहीं गुजरातमें न उड़ाले जाना मुझे पंजाबके लिए इससे बहुत बड़ी आशा है।" श्रीकांतिविजयजी महाराजने भक्ति पूर्वक आचार्यश्रीके पदपोंमें नमस्कार कर कहा:-" कृपानाथ ! ऐसा कभी न होगा। यह आपका कृपापात्र बनगया है। इसके मनपर आपकी कृपादृष्टिका ऐसा जादू हो गया है कि, वह किसीके उतारे उतरने वाला नहीं है।" सच है-~ तुझे देखकर औरोंको किन आँखोंसे हम देखें ? वे आँखें फूट जायँ औरोंको जिन आँखोंसे हम देखें । " मैंने तो जब कभी इस विषयकी बात चली है इसको यही सलाह दी है कि, तू कभी गुरुचरणोंसे जुदा न होना। तेरा अहो भाग्य है जो तू आचार्य भगवानका विश्वासपात्र वनगया है । देखना कभी कोई ऐसी बात न करना जिससे तुझ पर आचार्यश्रीको शंका करनेका मौका मिले । कृपासागर ! इसके इस दर्जेपर पहुँचनेकी मुझे जितनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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