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। (ख) जीरा में संवत् १६४८ के मार्गशीर्ष शु० ११ के दिन श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिष्ठा और भरूच निवासी सेठ अनूपचन्द मलूकचन्द के लाये हुए रिफटक जिन बिम्बों की अञ्जनशलाका का कार्य स्वर्गीय भाचार्य श्रीमद्विजयानन्द मूरिजी महाराज के कर कमलों से सम्पन्न हुआ। उसमें आपका सहयोग भी अच्छा रहा। ... (ग) होशियारपुर में भी उसी साल आपके कर कमलों से श्री वासुपूज्य भगवान के बिम्ब की प्रतिष्ठा हुई। . (घ) नाभा से विहार करके आप होशियारपुर पधारे। वहाँ पर श्री स्व. आचार्य श्रीमद् १००८ श्री विजयानन्द सूरीश्वरजी महाराज की प्रतिमा की प्रतिष्ठा संवत् १६५७ के वैशाख मुदि ६ को सम्पन्न हुई।
(ङ) संवत् १६५७ की माघ सुदि १३ को जंडियाले में आपकी उपस्थिति में प्रतिष्ठा और अञ्जनशलाका की गई।
संवत् १६६३ का चातुर्मास करके आप जब नकोदर पधारे। वहाँ आपको ज्वर ने घेर लिया था। उन दिनों आपके शिष्य रत्न श्री ललितविजयजी महाराज बीकानेर में विराजते थे। वे गुरु महाराज की बीमारी के समाचार पाकर बीकानेर से लम्बी२ सफरें करके आपके चरणों में पहुंचे।
जीरे के हकीम हरदयालजी आपकी सेवा में इलाज करने के लिये उपस्थित हुए। आपका इलाज चालू हुआ;
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