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भारत सरकार की तर्फ से पुरातत्त्व की खोज करने वाले श्रीयुत् हीरानन्दजी शास्त्री ने फर्नहिल-नीलगिरि से लिखा था कि "भागमल्लजी ने उवाई सूत्र की प्रति और त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र ८, 8 और १० पर्व आपकी आज्ञानुसार भेज दिये हैं। बड़ी कृपा है। धन्यवाद करता हूँ। उवाई सूत्र पढ़ कर भेज दूंगा। मेरा विचार है, कुछ समय आपके पास व्यतीत करूँ। जब संभव होगा लिखूगा । मैं चाहता हूँ जैन धर्म के ग्रन्थ पढ़ कर उनको छपवाऊँ
और टीका टिप्पणी भी उनपर लिखू, जैसा कि योरुप में याकोबी साहब करते हैं। देखें, कब विचारपूर्ण होता है। यदि इतना दूर न होता तो कुछ न कुछ अब तक लिख लेता। कभी कभी कृपापत्र भेजियेगा।" । - ये महाशय बड़े विद्वान होते हुए भी निरभिमानी हैं। आप ( चरित्रनायक) से कई बार मिले हैं।
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धर्म प्रभाव - (क) आपके प्रयत्न से लुधियाने में "श्री हर्ष विजयजी ज्ञान भण्डार" नामक एक पुस्तकालय स्थापित हुआ। जो पीछे से आचार्य श्री जी की इच्छानुसार जंडियालागुरु में पहुँचा दिया गया।
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