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और शिष्टाचार करोगे। मेरे मनमें तुम्हारे लिए बहुत कुछ सन्देह था । आज सारा सन्देह दूर हुआ ।" आप सुनकर कुछ मुस्कराये ।
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संवत् १६७८ में आप बीकानेर में विराजते थे। यहां उपाश्रय के पास पण्डित मंगलचन्दजी भादाणी लखपति ब्राह्मण रहते थे। आपके उपदेश से उन्होंने 'सप्तव्यमनों' और रात्रि भोजन के त्याग की प्रतिज्ञा ली। वहीं चांदमलजी ढड़ा के साथ एक बङ्गाली सज्जन दर्शनार्थ आये थे । उन्होंने आपके व्याख्यान से सन्तुष्ट होकर आपका शिष्य मण्डली सहित फोटो लिया और कहा कि "मैं किसी बंगाली समाचार पत्र में इसे जैन धर्म और जैन साधुओं के आचरणों के विवेचन के साथ छपवा कर प्रकाशित करवाऊँगा ।"
आपका असीम विद्या-प्रेम किसी से छिपा नहीं है । बंबई में श्री महावीर जैन विद्यालय, गुजरात ( पालनपुर ) में जैन एज्युकेशनल फण्ड और पंजाब की कई संस्थाएँ आपकी शिक्षाभिरुचि की जीती जागती मिसालें हैं । वहाँ आपने उपदेश देकर पंजाब में भी आत्मानन्द जैन कॉलेज के लिए चन्दा लिखवाना आरम्भ किया । परन्तु फिर यहाँ कॉलेज से पहले गुरुकुल खोलने का विचार हो गया और यह चंदा गुरुकुल के उपयोग में आया ।
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