________________
( ७७ )
स्वर्गीय आचार्य श्रीमद् विजयानन्द मूरिजी महाराज की बेदी-प्रतिष्ठा हुई। आप उस वक्त बिनौली में विराजते थे, किन्तु वेदी-प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में आपने एक स्तवन बना कर भेजा था। उसमें गुरु महिमा वर्णित थी। _ संवत् १९६६ में जब आप पालनपुर में विराजते थे, उस वक्त राधनपुर निवासी दानवीर सेठ मोतीलाल मूलजी आपके पास आये। आपने उन्हें सिद्धाचलजी का संघ निकालने के लिए प्रोत्साहित किया। स्वयं संघ के साथ सिद्धाचलजी की यात्रा कर और श्रावकों को धर्मोपदेश देकर कृतार्थ किया। आपके ही उपदेश से सेठ मोतीलाल मूलजी संघवी ने २००००) रुपये इसलिए निकाले कि यदि कोई जैन विद्यार्थी मैट्रिक पास करके आगे अभ्यास करना चाहे तो उसे स्कॉलर-शिप दिया जाय। उसो समय वह रकम इन्होंने चार ट्रस्टियों को सौंप दी। अनेक विद्यार्थी इस रकम से स्कॉलर-शिप पाकर ग्रेज्युएट हुए हैं। ___ उदयपुर मेवाड़ में संवत् १९७७ की वैशाख वदि ३ को 'श्री वर्द्धमान ज्ञान मन्दिर' नामक पुस्तकालय खोला गया। उसके उद्घाटन का श्रेय भी आप ही को है। वहाँ पर श्री विजयनेमिमूरिजी महाराज साहेब के साथ आपकी मुलाकात हुई । उन्होंने कहा-“वल्लभ विजयजी! मैं नहीं समझता था कि तुम इस प्रकार की सज्जनता दिखलाओगे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org