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के शिष्य होमियता केवल लिए आये थे
- संवत् १९६६ के आषाढ़ मास में जब मुनि विचक्षण विजयजी की दीक्षा पालनपुर में हुई तब वहां के नवाब साहब भी दीक्षा महोत्सव देखने के लिए आये थे। .
__ आपकी लोक-प्रियता केवल श्रीमद्विजयानन्द सरीश्वरजी के शिष्य होने से ही नहीं, किन्तु अपने लोकातिशायी गुणों के कारण भी हुई है।
आपके व्याख्यानों में सार्वजनिक धर्म को ही मुख्यता मिली है। आप सब धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं। इसीलिए अन्य धर्मावलम्बियों की दृष्टि में भी आप पूज्य समझे जाते हैं।
संवत् १९६६ में आप संघ के साथ लींबड़ी (स्टेट) पधारने वाले थे, तो आपकी यशोगाथा को सुनकर लींबड़ी दरबार ने कहला भेजा था कि “मुझे दर्शन दिये बिना आप यहां से पधारें नहीं। विशेष, आपका व्याख्यान कितने वजे और कहां होगा ?" इत्यादि। ... यद्यपि संघ वहाँ एक ही दिन ठहरने वाला था, किन्तु दरबार के आग्रह से उसे एक दिन अधिक ठहरना पड़ा। वहाँ डेढ घण्टे तक आपने उपदेश दिया। व्याख्यान में राजा साहिब सपरिवार पधारे थे। व्याख्यान की समाप्ति पर उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा : "आपका व्याख्यान सुन कर मुझे बड़ा हो आनन्द प्राप्त हुआ। मैंने सुना था कि
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