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सिर झुकाया। जैन समाज के हितार्थ आपने दो चौमासे बंबई में किये। परिणाम में 'श्री महावीर जैन विद्यालय नामक महती संस्था स्थापन करने का निश्चय हुआ और उपधान आदि अनेक धार्मिक कार्य करवाये।
एक वर्ष और भी आप श्रीजी के वहां रहने की जरूरत थी परन्तु उस वर्ष आप सूरत चले आये। इन दिनों आपके शिष्य समुदाय में से मुनि ललितविजयजी, मुनि उमंगविजयजी, मुनि विचक्षणविजयजी म्हेसाणे का चातुर्मास समाप्त करके श्री सिद्धाचलजी की यात्रा करते हुए आप श्रीजी की सेवा में सूरत उपस्थित हुए। आपने मु० ललितविजयजी आदि अपने शिष्यों को बंबई भेजा
और आप काठियावाड़ और गुजरात में विचरते रहे। इसी चातुर्मास में बंबई में महावीर जैन विद्यालय की स्थापना हुई। - प्रामानुग्राम विचरते हुए आप जूनागढ़ पधारे। वहां आपका नगर प्रवेश बड़ी धूम धाम से हुआ। हज़ारों की भीड़ थी। आप एक उच्चासन पर विराजमान हुए । आप का धर्मोपदेश होने लगा इतने में किसी श्रावक की ८ वर्ष की कन्या दो मंजिल से गिर पड़ी। नीचे पत्थरों का फर्श था। सब लोग घबराये, व्याख्यान में जरा कोलाहल मचा। लोग उस कन्या के शरीर पर नारियल का
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