________________
बाबाजी कुशलविजयनी महाराज स्थंडिल जाकर आये, श्री हीरविजयजी महाराज गोचरी (भिक्षा) लेकर आये और श्री मुमतिविजयजी महाराज पानी लेकर आये। वृद्ध महापुरुषों को देख कर उन भक्त श्रावकों के चित्त बहुत प्रसन्न हुए और अपने मनोगत भाव व्यक्त करते हुए बोले-हम ऐसा ही चाहते थे, कि अभी वृद्ध मुनिराजों के साथ रह कर यह पूरा २ अनुभव प्राप्त करके सुयोग्य बनें। हमारी इच्छा पूर्ण हुई।
प्रामानुग्राम विहार करते हुए आप काश्मीर की राजधानी जम्मू में पहुंचे। वहां एक मास तक आपके व्याख्यानों की झड़ी लगी रही। जिससे ब्राह्मण पंडितों मे सहर्ष लाभ उठाया। वहां से विहार करते हुए आप छ साधुओं को साथ लेकर किसी गांव में पहुंचे। वहां नों का एक भी घर नहीं था। शाम हो गई। एक अमेशाला में जाकर आपने आश्रय लिया। उस गाँव में
कथावाचक भी रहते थे। वह सायंकाल के समय अर्मशाला में हमेशा कथा किया करते थे; उस दिन भी माये। कथा प्रारंभ हुई श्रोताओं से उन्हें मालूम हुआ कि शाला में कुछ साधु आकर ठहरे हुए हैं। तुरन्त क्रोध वाकर वे कुछ २ बोलने लगे। मुनि महाराज शान्त
सब कुछ सुन रहे थे। कथा समाप्त होने के बाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org