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________________ ( १५४ ) वासी ने मिल कर उत्सव मनाया। अध्यक्ष के पद को श्री आचार्य महाराज ने सुशोभित किया । आपके व्याख्यान में निराली ही छटा थी । रथयात्रा का जलूस भी निकाला गया। आपको जल्दी ही पंजाब पहुँचना था, इस लिये वहां से शीघ्र ही विहार कर अजमेर पधारे । - अजमेर में आप केसरगंज में ठहरे। वहां के पल्लीवाल भाइयों को एक मंदिर की बड़ी आवश्यकता थी । ये भाई पहले आर्यसमाज व दिगम्बराम्नाय आदि को मानते थे परन्तु थोड़े समय पहले श्री दर्शनविजयजी महाराज के सदुपदेश से श्वेतांबर सम्प्रदाय में सम्मिलित हुये थे । हमारे चरित्रनायक के उपदेश से उनके मंदिर निर्माण के लिये द्रव्य संग्रह करने का कार्य्यं प्रारंभ हुवा। दूसरे दिन यहां से धूम धाम के साथ लाखणकोटड़ी के उपाश्रय में पधारे । इस प्रकार जयपुर आदि नगरों को पवित्र करते हुये बैराट पहुँचे । यहां श्वेताम्बर श्रावकों के पहले ३०० घर थे । परन्तु अब केवल ३ घर रह गये हैं। यहां का श्वेताम्बर मंदिर भी अब दिगम्बरों के हाथ में चला गया है। इस तरफ भी समाज के नेताओं को ध्यान देना चाहिये । बैराट से आगे अलवर में यद्यपि श्वेताम्बर संप्रदाय के केवल ३ घर हैं तथापि प्रवेश के समय उन्होंने अच्छे उत्साह का परिचय दिया। उनके प्रयास अथवा उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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