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( १३४ ) श्रीयुत् के. के. ठाकुर साहिब की अध्यक्षता में हुआ। आपके व्याख्यानों में अधिकारी वर्ग भी लाभ लिया करता था।
इचंद कशलचंद वालों ने मांडवी की पोल में श्री आदिनाथ भगवान के जीर्ण प्रायःमंदिर को जीर्णोद्धार कराना निश्चित किया। यह सब आपके ही सदुपयोग का परिणाम था। उनकी इच्छा इस मंदिर की प्रतिष्ठा भी आप ही के कर कमलों से कराने की हुई।
श्रीयुत् सेठ मूलचंद बलाकीदास के उजमणे पर जैनाचार्य श्री विजयनेमिमूरि महाराज आदि भी पधारे थे। उनसे आपका अच्छी तरह मिलाप हुआ। उद्यापन के जुलूस में आप दोनों मूरिवरों का पूर्ण प्रेम से एक साथ चलना खंभात के इतिहास में अपूर्व गिना जाता है। सेठ अम्बालाल पानाचंद की धर्मशाला में जहां आप ठहरे हुये थे, श्री विजयनेमिमूरिजी महाराज, श्री चरणविजयजी की मुखसाता पूछने के लिये पधारे। इस परस्पर मिलन का जैन जनता पर कल्याणकारी प्रभाव पड़ा। - चातुमोस पूरा होने पर अहमदाबाद से आचार्य श्री विजयललितमूरिजी, पंन्यासजी श्री समुद्रविजयजी, श्रीप्रभाविजयजी, विक्रमविजयजी, सत्यविजयजी आदि सुनिराज भी अनेक ग्रामों में विचरने हुए चैत्र मास में खंभात में आ मिले।
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