SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११६ ) आचार्य महाराज ने शान्तिस्नात्र का महत्व और भावार्थ विस्तार से समझाया। नवाब साहिब पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। यहां से ही शताब्दि महोत्सव की उद्घोषणा हुई और उसके लिये फंड भी जमा होने लगा। . पालणपुर से आप पाटण गये। प्रवर्तकजी श्री कान्तिविजयजी और श्री हंसविजयजी महाराज से एक बार फिर मिलाप हुआ। अहमदाबाद में होने वाले मुनि सम्मेलन में जाने का विचार था परन्तु श्री हंसविजयजी की बीमारी को देख कर मन कुछ आना कानी कर रहा था। श्री हंसविजयजी महाराज को जब समाचार मिला तो आप अपने शान्ति स्वभाव से कहने लगे-'आप मुनि सम्मेलन में अवश्य जावें। उससे धर्म की प्रभावना और शासन की उन्नति होगी। मेरी बीमारी का आप खयाल न करें। देवगुरु की कृपा से सब अच्छा ही होगा। उनके इन शब्दों का आप पर विचित्र प्रभाव पड़ा। उनकी रुग्णावस्था को देख कर उनको छोड़ने को जी नहीं चाहता था तथापि उनकी प्रेरणा से आपने अहमदाबाद जाने का विचार किया। अभी आप बहुत दूर नहीं गये थे कि रांधेज में ही आपको श्री हंसविजयजी महाराज के स्वर्गवास का समाचार मिल गया। ... आगे देह गाम में एक प्राइवेट परामर्श हुआ, जिसमें जैनाचार्य श्रीमद्विजय नीतिसूरिजी महाराज, स्वर्गवासी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002670
Book TitleKalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
PublisherParshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publication Year1938
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy