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(११४ ) पाटण में विराजमान श्री हंसविजयजी महाराज की बीमारी का समाचार मिला। अतः आपने पूर्व निश्चित प्रोग्राम को स्थगित कर पाटण जाना ही उचित समझा। आपको अचानक पाटण गये देख कर और आने का कारण जान कर लोगों के मन को बड़ी प्रसन्नता हुई। श्री हंसविजयजी महाराज के दर्शन करके आपने पालीताणा की ओर विहार किया।
पालीताणा में ८ रोज विश्राम करके आपने श्री परम पवित्र तीर्थराज श्री शत्रुजय की यात्रा की। पालीनाणा के ठाकुर साहिब श्रीयुत् बहादुरसिंहजी से भी राजमहल में मुलाकात हुई। पाटण से मुनि श्री कपूरविजयजी, श्री चंदनविजयजी तथा श्री दर्शनविजयजी भी आपके साथ ही पालीताणा गये थे। पालणपुर से विहार करके मुनि श्री मित्रविजयजी, श्री सागरविजयजी, श्री प्रभाविजयजी और श्री शिवविजयजी महाराज तथा उम्मेदपुर ( मारवाड़) से मुनि श्री विशुद्धविजयजी, विक्रमविजयजी भी पालीताणा आकर मिल गये। भावनगर से सेठ कुंवरचंद आनन्दजी, सेठ झूठाभाई, श्री वल्लभदास त्रिभुवनदास गाँधी इत्यादि ३०-४० सद्गृहस्थ विनती करने आये और उनके आग्रह के कारण आप भावनगर पधारे। धूमधाम का तो कहना ही क्या। जहां कहीं आपका प्रवेश होता था वहाँ
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