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(९०) महाराज श्री आत्मारामजी की जयन्ती बड़ी धूम-धाम से वहीं मनाई गई। तत्पश्चात् बाली, सेसली तीर्थ, लुणावा, सेवाड़ी, राता महावीरजी की यात्रा करके आप बीजापुर पघारे। आपकी प्रशंसा सुनकर बीजापुर के ठाकुर साहिब आपके दर्शनार्थ आपकी सेवा में पधारे और आपसे बात चीत करके बड़े आनंदित हुये। फिर बीजापुर से लुणावा होकर लाठारे, राणकपुरजी आदि की यात्रा करके सादड़ी, घाणेराव. देसूरी, सुमेर, बागोल, नाडलाई होते हुए आप नाडोल पधारे। वरकाणा से श्रीपंन्यासजी ललितविजयजी महाराज वहां आकर मिले। वरकाणा के विद्यार्थीगण तथा उनके अध्यापक भी वहां दर्शनार्थ आये।
आपकी कृपा से गोड़वाड़ प्रॉन्त में उन्नति के साधन रूप इस विद्यालय के स्थापित होने से आपका वहां चातुर्मास कराने की गोड़वाड़ संघ की इच्छा दिन प्रति दिन बलवती होने लगी। संघ ने आपकी सेवा में भक्ति भाव से प्रार्थना की। आपने भी अधिक धर्म लाभ होने की आशा से उनकी प्रार्थना को स्वीकार करना ही योग्य समझा। अतः आप का चौमासा बिजोवा में ही हुआ। इससे विद्यालय को बहुत पुष्टि मिली और गोड़वाड़ संघ में शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार होने लगा। चातुर्मास के निर्विघ्नतया समाप्त होने पर आप शिवगंज होकर श्री
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