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________________ दिव्य जीवन भेंट स्वरूप भेजे। गुरुदेवने सेक्रेटरी महोदयको कहा : “महारानी साहिबासे निवेदन कीजिये कि मैं आपके शुभ भक्तिभावका आदर करता हूं, परन्तु हम जैन साधु कोई चीज नहीं लेते। हमारे लिये पैसा अस्पृश्य है और दूसरी चीजें भी, जो हमारे निमित्तसे लाई गई हों, अग्राह्य हैं।" महारानीजी इस उत्तरसे अत्यन्त ही प्रभावित हुई और गुरुदेवका व्याख्यान सुननेके लिये उत्कंठित हई । गंगा थियेटरमें व्याख्यानकी व्यवस्था की गई। व्याख्यानमें रानी साहिबा, पर्देकी पूर्ण व्यवस्थाके साथ बिराजी। अनेक पर्देवाली महिलायें, राज्याधिकारी एवं नगरके गणमान्य लोग भी आये थे। यह व्याख्यान ५ नवम्बर १९४४के दिन सबेरे दस बजे हुआ था। गुरुदेवका प्रवचन इतना प्रभावशाली था कि महारानी साहिबा अत्यन्त ही सन्तुष्ट हो गई। ___ इस प्रकार गुरुदेवने राजा-महाराजाओं, रानी साहिबा तथा पंडितोंको अपने विद्वत्तापूर्ण सारगर्भित प्रवचनोंसे प्रभावित किया था और उनको सत्यपथगामी बनाया था। गुरुदेवकी सभामें सभी जातिके लोग सम्मिलित होते थे। उनकी व्याख्यानशैलीकी विशेषता यह थी कि वे कुरान, बाइबल, गीता, उपनिषद् तथा सभी धर्मग्रन्थोंके उद्धरणों एवं उदाहरणोंसे धर्मके रहस्यको समझाते थे। गुरुदेवमें विश्व-संतका दिव्य रूप था। उनका व्यक्तित्व प्राचीन मानवताके दिव्य प्रकाशसे आलोकित था और उनका आचरण साधुताकी सुगन्धसे सुवासित था। खादीधारण व राष्ट्रभावना -- आचार्यश्रीने संवत् १९७६से लेकर आजीवन हाथसे कते-बुने शुद्ध खादीके वस्त्रका प्रयोग किया। उन्होंने अन्य साधु-सन्तोंको तथा लोगोंको भी खादी पहिननेका उपदेश दिया। गुरुदेवने आचार्य पदवी-प्रसंग पर पंडित हीरालाल शर्मा द्वारा कते हुए सूतसे निर्मित खादीकी चादर धारण की। एक प्रसंग तो ऐसा भी था जिसमें गुरुदेवका स्वागत करनेवाले सभी भाई-बहनोंने खादीके वस्त्र पहने थे। इस प्रकार गुरुदेवने राष्ट्रीय भावनाको अपनाया था। गांधीजी द्वारा संचालित शराबबन्दी आन्दोलनमें उन्होंने स्थान स्थान पर दारुबन्दी पर भाषण दिये तथा अनेक राजा-महाराजा तथा जमींदारोंको मदिरासेवन न करनेकी शपथ दिलवाई थी। साधारण जनता तो उनके मद्यनिषेध संबंधी भाषणोंको सुनकर मुग्ध हो जाती थी और मदिराका सदा-सर्वदा परित्याग कर देती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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