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दिव्य जीवन
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संवत् १९८४ में पाटणके पंचासरा पार्श्वनाथ मंदिरके प्रांगण में गुरुदेवकी निश्रामें एक विशाल विद्यार्थी सम्मेलन आयोजित हुआ था । इस सम्मेलन में पंजाब, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशोंके विद्यार्थी सम्मिलित हुए थे । गुरुदेवने विद्यार्थियोंको उद्बोधन करते हुए कहा : अपना चरित्रबल विकसित करो । राष्ट्रके सुनागरिक बनो । राष्ट्र और समाज तुम्हें आशाभरी दृष्टिसे देख रहा है । देशप्रेम, मानवता, प्राणिमात्र के लिये मैत्रीभाव रखते हुए अच्छे कामोंकी सुगन्ध संसारमें फैलाओ ।"
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महावीर जैन विद्यालय के सम्मेलनमें गुरुदेवने विद्यार्थियोंको चरित्रवान नागरिक बननेका सदुपदेश दिया था । गुरुदेवने विद्यार्थियोंको जागृत किया तथा सद्जीवनकी ओर उन्हें उन्मुख किया। उनका शिक्षाप्रेम विद्यार्थियोंके प्रति प्रेम प्रदर्शित करता है । गुरुदेवने राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र में अनेक सभाओं में विद्यार्थियोंको उद्बोधन किया । इन प्रवचनोंका यह प्रभाव हुआ कि विद्यार्थीजगत् में जागृति आई और उनमें देशप्रेम, मानवता एवं सुनागरिकताके भाव पनपे और वे सेवापथ पर बढ़ने लगे । आज भी उस स्वरकी आवश्यकता है। आजको विषम परिस्थितिमें गुरुदेवका स्मरण हो आता है। गुरुदेव विद्यार्थी मित्रके रूपमें सदा स्मरणीय रहेंगे ।
मानवताकी मूर्ति -- गुरुदेव संवत् १९५४में मालेरकोटला पधारे। वहां काल पड़ गया । गुरुदेवने जनताके कष्टसे पीड़ित होकर राहतफंड स्थापित करवाया। वहां अन्न और जलके कष्टसे पीड़ित भाई-बहनोंको गुरुदेवने बिना किसी भेदभाव के सहायता पहुंचवाई। ऐसे थे महामानव गुरुदेव -- मानवताकी प्रतिमा। ऐसे कितने ही प्रसंग हैं जब कि गुरुदेवने पीड़ितोंको सहायता एवं राहत पहुंचवाई थी । गुरुदेवने पीड़ित प्राणियोंकी सेवामें जीवन बिताया । जहां कहीं दुष्कालसे पीड़ित मानव, पशु आदि देखे, वहां राहतफंड स्थापित करवा कर सहायता पहुंचाई। जहां असहाय विधवा या भाईबहन देखें वहां उन्होंने सहायताफंड स्थापित करवाये और शिक्षाके अभाव में जहां विद्यार्थियोंकी बाधायें देखी वहां उन्होंने छात्रवृत्तियां और आर्थिक सहायता देकर विद्याकी ओर उन्हें प्रवृत्त किया ।
निमोह वृत्ति व उदार दृष्टि -- संवत् २००१ का बीकानेर चातुर्मासका प्रसंग हैं । गुरुदेवके प्रवचनोंका प्रभाव समस्त जनता पर पड़ गया था । बीकानेरकी महारानी साहिबाने श्रद्धा-भक्तिसे गुरुदेवके पास अपने प्राइवेट सेक्रेटरी पं० दशरथजी शर्मा एम० ए०के साथ कुछ रुपये और दो नारियेल
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