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दिव्य जीवन
ऐसे थे पूज्य गुरुदेव -- जिन्होंने समाज और व्यक्तिको ऊंचा उठानेका जीवनपर्यन्त सत्प्रयास किया ।
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भव्य अभिनन्दन - - गुरुदेवका शुभागमन संवत् २००२ मार्गशीर्ष शुक्ला ३को मालेरकोटला में हुआ । गुरुदेवका भाव- मीना स्वागत किया गया । मुस्लिम बन्धुओंने, सिक्ख भाइयोंने तथा नगरनिवासियोंने गुरुदेवके स्वागत में गीत गाये, अभिनन्दन पत्र पढ़े ।
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गुरुदेवने गद्गद् होकर कहा : आपके अभिनन्दनोंके भारसे मैं दब रहा हूं। मुझ जैसे जैन साधुको आप अभिनन्दन पत्र दे रहे हैं, इसका क्या अभिप्राय है ? मेरा धर्म, मेरा कर्त्तव्य, मेरी साधुता, समाज, देश और प्राणिमात्रकी सेवाके लिये है । मेरा यह सन्देश है : भारतकी आजादीमें हम सबका कल्याण है । और आजादी तभी मिल सकती है जब हिन्दू, मुसल - मान, सिक्ख आदि सभी एक हों । हरएक तरहका बलिदान देकर हमें एकता कायम रखनी होगी । यदि प्रत्येक गांव और शहरमें एकता कायम हो जायेगी तो भारतवर्षका विश्वशांतिके काम में महत्त्वपूर्ण स्थान रहेगा । हम सब एक हैं। हम सबको हिलमिल कर रहना चाहिये । हम जब अपने पड़ौसीके दुःखसे दुःखी और सुखसे सुखी होना सीखेंगे तभी हम खुदाके सच्चे बंदे तथा ईश्वरके सच्चे भक्त हो सकेंगे ।
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इस भाषणका गहरा प्रभाव था। सभी लोगोंने गुरुदेवकी विशालताकी प्रशंसा की। उनमें प्रेम जागृत हो गया । अनेक मांसभोजी व्यक्तियोंने जिनमें हिन्दू, सिख और मुसलमान भाई भी शामिल थे. - मांसभोजन सदासर्वदा के लिये त्यागने की समामें प्रतिज्ञा की । ऐसे थे महान् गुरुदेव, जिन्होंने समाज और मानवमें अहिंसाके प्रति प्रेम जागृत किया और उन्हें ऊंचा उठाया । जनताने भी जाति और सम्प्रदायके भेदको भूलकर गुरुदेवको अपना सच्चा गुरु माना ।
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बाणीका अमृत - संवत् १९९८की बात है । गुरुदेव पंजाबके अनेक नगरों एवं गांवों में विहार करते हुए नारोवाल पहुंचे । नारोवाल नगर सजाया गया। गुरुदेव के स्वागत के लिये अनेक बैंड बाजे थे तथा अनेक द्वार रचे गये थे । गुरुदेव के स्वागत के लिये आसपास के गांवोंके लोग आये थे । सार्वजनिक सभामें सभी जातियों के लोग उपस्थित थे । गुरुदेवने सप्त व्यसनों पर भाषण दिया । गुरुदेवके भाषणका सार था : "मदिरापान, मांसभक्षण, शिकार आदिका शौक मनुष्यमात्रके लिये घातक है । इससे मनुष्य अपने तन और
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