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________________ दिव्य जीवन प्रतिष्ठा करता है । जबकि अधर्म मानवके हृदयमें स्वार्थवृत्ति, राक्षसी प्रवृत्ति, संग्रहखोरी और दूसरोंको हानि पहुंचानेवाली दानवी वृत्तिका ओर प्रेरित करता है।" -- धर्मका प्रकाश 'शीलका प्रभाव' निबन्धमें गुरुदेव प्रारम्भमें लिखते हैं : “शील जीवनका भूषण है। शील उत्तम चरित्रको कहते हैं।" थोड़ेसे शब्दोंमें कितनी गूढ़ बात कह दी ! इसे कहते हैं सूक्तिशैली। अंग्रेजी साहित्यम निबन्धकार बेकन महोदयकी ऐसी ही शैली है। हिन्दीमें आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीकी शैलीमें इसी प्रकारकी गरिमा है। गुरुदेवकी शैली पाठकों एवं श्रोताओंको स्नेहके धागेसे बांधती तथा मनको छूती हुई नदीकी अबाध धाराकी तरह प्रवाहित होती है। एक नमूना प्रस्तुत है : "तपका नाम सुनकर आप घबराइये मत । क्योंकि तपका अर्थ केवल खाना-पीना बन्द करना ही नहीं है; तपस्या जीवनको बुराइयोंकी ओर जानेसे रोकती है। “विनय धर्मका मूल है। विनम्रतामें लचीलापन होता है, परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि विनम्र व्यक्ति गंगा गये गंगादास, जमना गये जमुनादास हो जाय । लचीलापन होने पर भी विनम्र व्यक्ति सिद्धान्तपालनमें दृढ़ होता है। विनय जीवनरूपी सोनेको लचीला बना देता है। जबतक सोना नरम नहीं होता तबतक उसमें नग भी नहीं जडा जा सकता। सद्गुणोंके नग जड़नेके लिये पहले जीवनरूपी स्वर्णको नरम बनाना होगा।" इन शब्दोंमें गुरुदेवने आलंकारिक शैलीमें विनयकी सरस व्याख्या की है। शब्दोंमें अर्थ इसी प्रकार प्रतिबिम्बित होता है कि जिस प्रकार दर्पणमें परछाई । अर्थ कितना स्पष्ट है ! शैलीकी विशेषता देखते ही बनती है ! प्रकृतिकी सुरम्य छटामें गुरुदेवकी लेखनी क्रीडा करती हुई दिखाई देती है । गुलाबके पुष्पोंको आप और हम सदा देखते हैं, परन्तु साहित्यकारकी दृष्टि अनूठी होती है। वह उसमें से जो भाव ग्रहण करता है उसका कारण है उसकी प्रतिभा। 'सेवाकी सौरभ' शीर्षक निबन्धमें गलाब पुष्पको देखकर गुरुदेव क्या सोचते हैं ? -- "गुलाबके फूलकी खुशबूसे आपका दिल बाग बाग हो जाता है। पता है, गुलाबने इतनी खुशबू कैसे पाई ? कांटोंके बीच उसकी शय्या रहती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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