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दिव्य जीवन
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- केमेरेके क्लिकके साथ फोटूके खिचे जाने और प्रभुमूर्तिको देखकर हृदय पर अंकित हो जानेमें समानता दिखाई देती है । केमेरा और फोटू शब्दों का प्रयोग बोधगम्य है । भाषा में वैज्ञानिक शब्दावलीका समावेश होना चाहिये तथा उसमें जनजीवनकी झाँकी रहना चाहिये ।
होलीका एक भावपूर्ण वर्णन पढ़कर मीराकी याद हो आती है :
ज्ञान रंग समता पिचकारी छांटो सुमता नार रे,
ज्ञान ध्यान तय जप आगीमें अष्ट कर्मको जार रे । दिव्य तेज चिन्मय सिद्ध प्रगटे आवागमन निवार रे, आत्म लक्ष्मी होरी खेली 'वल्लभ' हर्ष अपार रे ।। मीराबाईने भी गाया है :
फागुन के दिन चार रे होरी खेल मना रे, सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे । उडत गुलाल लाल भयो अंबर बरहत रंग अपार रे, घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे । होरी खेल पिव घर आये सोइ प्यारी पिय प्यार रे, मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे ॥
इस प्रकार भक्तिकी पिचकारी में प्रेमका रंग भरकर सन्तोंने होली
खेली है ।
[ गुरुदेव के निबन्धसंग्रह, वल्लभप्रवचन प्रथम एवं द्वितीय भागोंका समीक्षात्मक अध्ययन ]
१२ गद्य - शैली
आचायदेवके भाषण वल्लभप्रवचन' में संकलित हैं । इन भाषणोंकी शैली प्रभावशालिनी तथा बोधगम्य है । सरल शब्दोंमें गहन भावोंको समझानेकी गुरुदेवकी क्षमताको देखकर उन्हें उच्च कोटिका गद्यलेखक मानना उपयुक्त होगा ।
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धर्मकी व्याख्या करते हुए गुरुदेव कहते हैं : " धर्म हृदयमें घुसी हुई दानवी वृत्ति, स्वार्थलिप्साको निकालता है और उसमें मानवताकी प्राण
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