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दिव्य जीवन गुरुदेव तो विश्वसंत थे। वे अपने अन्तःचक्षुओंसे देखते थे कि सभी प्राणियोंमें दिव्य ज्योति जल रही है। वह दिव्य ज्योति जब प्रकट होती है तब जीवन पलटा खाता है। इस संबंधमें एक घटना उल्लेखनीय है :
आचार्यदेव नाणा ग्राममें विहार करते हुए पधारे। ग्रामके ठाकुरने उनके स्वागतके लिए अपना रथ भेजा। ग्रामकी जनता गुरुदेवके अभिनन्दनके लिए भारी संख्यामें पहुंची। समस्त ग्राम सजाया गया। गुरुदेव ठाकुर साहब लक्ष्मणसिंहजीके महलमें पज्ञारे। गुरुदेवने ठाकुर साहब तथा उनके बन्धु श्री रामसिंहजीको राजाओंके प्रजापालनके संबंधमें उपदेश दिया। गुरुदेवकी सुधा तुल्य वाणीको सुनकर ठाकुर साहब गद्गद् हो गये। उन्हें नई दृष्टि मिली। उन्होंने मांस-मदिराका सदा-सर्वदाके लिए त्याग कर दिया, शिकार खेलना बन्द कर दिया। इतना ही नहीं, ठाकुर साहबने नाणा ग्रामकी सीमामें शिकार खेलना बन्द करवा दिया। ठाकुर साहब लक्ष्मणसिंहजीकी तीनों रानियोंने मांस-मदिराका त्याग कर दिया। उनके बन्धु श्री रामसिंहजी भी शाकाहारकी ओर प्रवृत्त हुए। ___ इस घटनासे मुझे जगद्गुरु हीरविजयसूरिजीके महाप्रयासोंका स्मरण हो आता है। महान् अकबरको प्रतिबोध देनेवाले जगद्गुरुका नाम लेनेसे मनमें आनन्दकी तरंगे उठने लगती हैं। व्यक्ति और समाजके उत्थानके लिये जगद्गुरुने जिस मार्गका अनुसरण किया था, उस राजपथको गुरुदेव वल्लभने सुशोभित किया। संतजनोंका यही मार्ग है।
गुरुदेवकी विनम्रता और प्रेम-भावना जनमनको छू लेती थी। उनके प्रेममें करुणा और विश्वमैत्रीका मधुर मिलन था। उनका ज्ञान उच्च कोटिका था । ज्ञान और प्रेमका सरस मिलन दर्शकको लुभा लेता है। एक दार्शनिकने कहा है : ज्ञान दीपक है, प्रेम उसका प्रकाश है। गुरुदेवका जीवन इस कथनकी सत्यता प्रकट करता है। ज्ञान और प्रेमयुक्त जीवनमें जो ज्योति जलती है उसकी चमकको सरलता कहा जा सकता है। यह सहज सरलता विद्वानोंको भी आकर्षित कर लेती है। विद्वान पंडित बद्रीप्रसादजीका मिलनप्रसंग गुरुदेवकी सहज सरलताका सजीव उदाहरण प्रस्तुत करता है। पंडित बद्रीप्रसादजी महेन्द्रगढ़ (पटियाला जिला)के निवासी थे। वे द्वारका तीर्थकी ओर जा रहे थे। वे गुरुदेवके दर्शनके लिये आबूरोड स्टेशन पर उपरे। उनके साथ होशियारपुरके श्री शांतिलाल भी थे। शान्तिलालभाईने पंडितजीको गुरुदेवके महान् जीवनकी चर्चा की, जिससे उनकी दर्शनप्यास बढ़ गई।
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