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________________ सेवा-सौरभ वल्लभनगरकी सजावट देखकर ऐसा लग रहा था मानो छोटी-सी अलकापुरी धरती पर बस गई हो। कितने ही द्वार बनाये गये। आत्मद्वार, वल्लभद्वार, ललितद्वार, कांतिद्वार, हंसद्वार आदिकी शोभा रमणीय थी। कहीं सुन्दर पताकायें पवनके साथ क्रीडा करती हुई ऐसी लग रही थी जैसे रंगबिरंगे पंखोंवाले पक्षी पवनमें अठखेलियां कर रहे हों। कहीं उच्च द्वारों पर सरस कथन मनको लुभा रहे थे। सरस कथनोंमें विद्या अमर धन है, ज्ञानज्योति जलाओ, अहिंसा परमो धर्मः, प्राणिमात्रसे मैत्री रखो, सभीमें ईश्वरकी दिव्य ज्योति है-- आदि सारवाक्य उन द्वारों पर बहुमूल्य आभूषणोंके समान लग रहे थे। ___ मुख्य द्वारकी साज-सजावट कलात्मक थी। स्वर्गीय गुरुदेव आत्मारामजी महाराज एवं आचार्य वल्लभसूरिजीके चित्र मुख्य द्वार पर सबको आकर्षित कर रहे थे। यह वल्लभनगर फालना विद्यालयके प्रांगणमें सजाया गया था। इसमें जैन कान्फ्रेन्सका समारोह होनेवाला था। इस समारोहके अध्यक्ष थे श्री कांतिलाल ईश्वरलाल तथा उद्घाटनकर्ता थे प्रसिद्ध उद्योगपति समाजरत्न श्री कस्तूरभाई लालभाई। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मद्रास, बंगाल, पंजाब तथा उत्तरप्रदेशसे अनेक सज्जन इस अधिवेशनमें सम्मिलित हुए थे। भारतके कोने कोनेसे शुभ संदेश भी प्राप्त हुए थे। अधिवेशनके प्राण लोकमान्य गुलाबचन्दजी ढड्ढा भी इसमें उपस्थित थे। संवत् २००६ मिति माघ शुक्ला पूर्णिमा, दिनांक २-२-५९ के प्रभात कालमें उत्सवका शुभारम्भ हुआ। जयपुरनिवासी श्री सोहनलालजी दूगडने ध्वज फहराया। ___इस अधिवेशनमें समाजोत्थान, शिक्षाप्रचार एवं समाजकी दयनीय दशा पर प्रेरणादायक भाषण हुए और सभीने आचार्यदेव वल्लभसूरिजीके महान उपकारोंकी भूरि भूरि प्रशंसा की तथा अनेक विद्वानोंने अपनी वाणी-वाटिकाके श्रद्धापुष्प उनके चरणकमलों पर चढ़ाये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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