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________________ दिव्य जीवन यह करुणा परम कृपालु परमात्माका दिव्य गुण है। इस दिव्य करुणाके द्वारा ईश्वरीय प्रेमप्रकाश विश्वपटल पर छिटक जाता है। आचार्यदेव' संवत् १९९८ पौष सुदि २को गुजरांवाला शहर पधारे। वहां आपके भाषणोंका विषय था आत्मशुद्धि । आत्मशुद्धिके लिये मांसाहारत्यागको अनिवार्य बताते हुए गुरुदेवने कहा : “ यह शरीर तो ईश्वरकी धरोहर है। इसे पवित्र रखना मनुष्यका परम कर्तव्य है। पवित्र शरीरमें पवित्र मन रूपी सिंहासन पर आनन्दघन प्रभु निवास करते हैं। मांसाहार मानवशरीरके लिये अनुपयुक्त आहार है। उससे शरीर पुष्ट बनता है, यह मनुष्यका भ्रम है।" इन भाषणोंका प्रभाव अमिट था। कितने ही मांसप्रेमियोंने मांसभोजन त्याग दिया। मौलवी अहमुद्दीनने गुरुदेवको खड़े होकर विनम्र वाणीमें कहा : " यद्यपि आज हमारा ईदका बड़ा त्यौहार है तो भी मैं आपके पवित्र वचन सुनने यहां आया हूं। जबसे आपने यह बताया कि कुरान शरीफमें भी गोश्त खाना मना लिखा है, तबसे हमारी गोश्त न खानेकी मान्यता और भी मजबूत हो गई है। मैंने अपने अनेक साथियोंको मांस भोजन न करनेकी शपथ दिलवाई है।" गुरुदेवने प्रसन्न होकर मौलवी साहबको कहा : “ मौलवीजी, मैं आपको मुबारकबाद देता हूं। खुदाका बन्दा, अल्लाहका प्यारा सबको प्यारकी निगाहसे देखता है। आप खुदाके सच्चे बन्दे हैं।" संवत् १९९९ आषाढ सुदि २को गुरुदेव चौमासेके लिये जंडियालागुरु पधारे। पर्युषण पर्वमें समाचार आये कि बंगाल और मेवाड़में हजारों कुटुम्ब संकटम आ पड़े हैं। आचार्यश्रीने पीड़ित भाई-बहनोंकी सहायताके लिये मर्मस्पर्शी भाषण दिये। आपने कहा : “हमारा धर्म जीवों पर दया करना है। जब हम छोटे छोटे प्राणियों पर दया करते हैं तब मनुष्य पर दया करना तो हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य हो ही जाता है। मैं चाहता हूं कि एक राहत फंड कायम किया जाये और उसके लिये सारे पंजाबमें चंदा जमा किया जाये और जमा हुई रकम पीड़ितोंकी सहायताके लिये भेजी जाय।" ____ आपके कारुणिक भाषणसे राहत फंड कायम हुआ और अच्छी रकम एकत्रित हुई, जो संकटग्रस्तोंको भेजी गई : यह थी आचार्यदेवकी मानवसेवा। गुरुदेवकी मानवता विशाल थी। भारत-विभाजनसे जो रक्तपात हुआ, उससे मानवता संत्रस्त हो गई। गुरुदेवने भारतीय जनताको कहा : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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