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________________ २५ दिव्य जीवन स्थित थे। हजारोंकी संख्यामें जनता सम्मिलित हुई। आचार्यदेवने जगद्गुरुके जीवन एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने प्रवचनमें कहा : "ऐसी कौनसी शक्ति थी जगद्गुरु हीरविजयजीमें, जिससे मुगल सम्राट महान अकबरको अहिंसा धर्मकी ओर आकर्षित हुआ।" आचार्यदेवने जगद्गुरुकी दिव्य शक्तिका उल्लेख करते हुए कहा : "जगद्गुरुने संसारको अहिंसा और प्रेमका सन्देश दिया। हिंसासे संसारमें संघर्ष बढ़ते हैं, अशान्ति फैलती है और जीवन नष्ट हो जाता है। सम्राट अकबरने जगद्गुरुके दिव्य गुणोंसे प्रभावित होकर उन्हें गुजरातके वाइसराय द्वारा आदरपूर्वक आगरा पधारनेके लिये आमंत्रण भेजा था।" ____ आगे चलकर आचार्यदेवने कहा कि “हम सबको जगद्गुरुके पवित्र आदर्शोको जीवनमें उतारना चाहिये। जगद्गुरुने विश्वकल्याण एवं प्राणिमैत्रीका दिव्य संदेश जगत्को दिया। करुणा और प्रेमसे विश्व कल्पवृक्ष बन सकता है। महान् अकबरने पूज्य हीरविजयसूरिजीको जगद्गुरुकी उपाधिसे विभूषित किया, जिसे उन्होंने सम्राटके प्रेमभावके कारण ही स्वीकार किया।" अन्तमें आचार्य वल्लभने कहा कि "समाजोत्थानके लिए जगद्गुरुके समान कर्तव्यभावनाकी आवश्यकता है। समाजका सरस वातावरण व्यक्तिका नवोदय कर सकता है। समाजको सजाने, संवारने एवं सुन्दर बनानेके लिये जगद्गुरुने कितना त्याग किया! अपनी दिव्य चारित्रिक शक्तिसे उन्होंने सम्राट अकबरके मानसको बदल दिया और मानवमें छिपे ज्योतिकरणको प्रज्वलित कर दिया, जो अज्ञानकी राखकी ढेरीमें छिपा हुआ था। न केवल जगद्गुरुने समाजोत्थान एवं व्यक्तिविकासके लिये अपनेको समर्पित किया, अपितु अपने साथियोंको भी समाज और व्यक्तिको ऊंचा उठानेके लिये प्रेरित किया।" ____ जगद्गुरुने जगत्कल्याणके लिए जो कार्य किये वे आज भी प्रेरणा दे रहे हैं। आचार्यदेव विजयवल्लभसूरिकी जीवनयात्रा भी जनमानसमें मनुष्यता जगाने में सफल हुई। जहाँ भी उनके चरणरज पडे उस स्थानमें जागृति आ गई। आचार्यदेव संवत १९९८ वैशाख वदि ९ को जम्मू शहरमें पधारे। उस समय आपके स्वागतमें जो जुलूस निकला वह अत्यन्त ही भव्य था। जम्मू शहरके मार्ग सुन्दर रंग-बिरंगी झंडियोंसे सजाये गये थे। कितने ही ग्रामोंमें बैंड बाजे सहित भजन मंडलियां और सभी तरहके लोग इस संतके दर्शनार्थ आये थे। आचार्यदेवके प्रति जनताकी अपार श्रद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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