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दिव्य जीवन
इस प्रकार आचार्यदेवने मनुष्यको दुर्व्यसनोंसे बचनेके लिये उपदेश दिये । उनका दृष्टिकोण था कि व्यक्ति जब ऊंचा उठेगा तब समाज और राष्ट्र ऊंचे उठ सकेंगे । राष्ट्रका गौरव गगनचुंबी अट्टालिकाओं एवं विशाल मवनोंसे कदापि नहीं बढ़ता, वह बढता है सुशील नागरिकोंसे । गुरुदेवने समाजोद्यानको फलतेफूलते देखना चाहा । उन्होंने एक प्रवचनमें कहा था : 'समाज उद्यान है । नर-नारी पुष्प-पौधे हैं । इस समाजोद्यानके बागवान हैं साधुसंत तथा समाजके अग्रणी । यदि इसे सुजलसे नहीं सींचा गया और आवश्यकतानुसार पेड-पौधोंकी कांटछांट और देखभाल नहीं की गई तो उद्यान कुरूप होकर उजड जाएगा।” गुरुदेव समाज - बगियाके माली थे ।
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सहृदय
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संवत १९८३, जेठ शुक्ला अष्टमीको वे बिनौली (उत्तर प्रदेश ) पधारे। वहाँ उन्हें दुःखी हरिजन बन्धु मिले। हरिजनोंने गुरुदेवसे कहा : 'हमें पानीका भारी कष्ट है । अछूत होनेके कारण हमें कोई कुओं पर पानी भरने नहीं देते। हम प्यासे मर रहे ह । "
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गुरुदेवको इससे अत्यन्त ही दुःख हुआ । उन्होंने हरिजन बन्धुओंको आशीर्वाद दिया और कहा : तुम्हारा कष्ट मेरा कष्ट है । मैं तुम्हारा जलसंकट दूर करनेका प्रयास करूँगा । "
मध्यान्हमें व्याख्यानके अन्तर्गत गरुदेवने हरिजनोंके कष्टका उल्लेख
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'मानवता ही धर्म है ।
प्यासे मर रहे हैं । कहां
किया और अत्यन्त ही दर्दभरी वाणीमें कहा : कितनी शर्म की बात है कि यहांके हरिजन बन्धु गया धर्म और कहां गया प्रेम ? दुःखी जनोंकी पीडा समझो । यही धर्मका सार है । गुरुदेवकी अपीलका असर गहरा था । शीघ्र ही धन इकट्ठा हो गया और हरिजनोंके लिए कुंआं बन गया ।
इस प्रकारकी थी गुरुदेवकी समाजसेवा |
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करुणाका स्वर
संवत् १९९३ में आचार्यदेवका चार्तुमास बड़ौदा नगरमें हुआ। वहांकी जनताने उनका भाव भीना स्वागत किया । न्यायमंदिरमें आचार्यश्री के सान्निध्यमें जगद्गुरु हीरविजयसूरिजी महाराजकी जयन्ती श्री मुखर्जीकी अध्यक्षता में धूमधाम से मनाई गई । जयन्ती समारोहम सभी जाति व धर्मके लोग उप
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