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दिव्य जीवन
देखकर रामचरितमानस ( अयोध्याकाण्ड ) का वह पुनीत प्रसंग स्मरण हो जाता है, जबकि रामदर्शनके लिये ग्रामोंके नर-नारी, बाल-वृद्ध सभी मार्ग में आ जाते हैं, जनता उनके पीछे चलती है :
गांव गांव अस होई अनंदू । देखि भानुकुल कैरव चन्दू |
धन्य सो देसु सेलु बन गाऊं । जहं जहं जाहि धन्य सोई ठाऊं |
- सूर्यकुलरूपी कुमुदनीको प्रफुल्लित करनेवाले चन्द्रमा स्वरूप रामके दर्शन कर गांव गांव अत्यधिक आनन्द हो रहा है । वह देश, पर्वत, वन और गांव धन्य है और वही स्थान धन्य है जहां राम जाते हैं ।
आचार्यदेवका व्यक्तित्व अत्यधिक गरिमावान था । वे जहां जाते थे उनके पास लोग खिंचे हुए आते थे और उनकी वाणी सुनकर सद्जीवनकी प्रेरणा पाते थे । जनताकी पीडाको वे समझते थे । उनमें सरलता थी और एक ऐसा आकर्षण था, जिसे चुम्बक कह सकते हैं । वह चुम्बकीय आकर्षण कितने ही दिव्य गुणोंसे बना था । सरलता, विनम्रता, सौम्यता एवं दिव्यताने उनके जीवनको चुम्बकवत् बना लिया था । उसे देखकर मनुष्यमें सद्भाव जागृत हो जाते थे और उनकी आत्मज्योति धीरे धीरे बढ़ने लगती थी । मेरे पास ऐसी कोई प्रतिभा नहीं, न शब्दभंडार है, न बुद्धिकी अंतर्शक्ति है कि वल्लभके जीवनको गरिमाका वर्णन कर सकूं ।
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अमृतधारा
जम्मू शहरसे वैशाख सुदि ६को आचार्यदेव विहार कर सत्तवारी, विसना, हरियाला, जफरवाला आदि शहर - गांवोंमें अहिंसा, प्रेम, करुणा और मैत्रीका संदेश देते हुए संखतरा पधारे । संखतरामें आचार्यदेवकी दिव्य वाणीका अमृतपान करनेके लिये हिन्दू, मुस्लिम, सिख आदि सभी जातियोंके लोग आते थे । कसाइयोंने भी अपनी दुकानें बन्द कर दी ।
आचार्यदेवने अहिंसा और प्रेम पर भाषण दिये । उनके अहिंसा के उपदेशसे संखतरामें श्रीयुत् मुहम्मद अनवर, मुहम्मद अकस्बाल, मुहम्मद रफी आदिने मांसभक्षणका परित्याग कर दिया। उन्होंने अत्यन्त ही प्रसन्न होकर कहा : आज हमारे भाग्य खुल गये हैं । हमने मनुष्यजीवनका सार समझ लिया है । गुरुदेव सचमुच फरिश्ता बनकर आये हैं । "
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