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________________ दिव्य जीवन चकोर चन्द्रको ओर देखता है, वह चन्द्रामृत पीकर तृप्त हो जाता है। सरोवरके पास प्यासा जाता है, क्या सरोवर उसे बुलाता है ? प्यासा अपने आप सरोवरको ढूंढ़ लेता है, भ्रमर अपने आप पुष्पको खोज लेता है। . चन्द्रकिरणका काम है कुमुद-कलीको खोल कर उसे प्रस्फुटित करना। रविकिरण पुष्पकलियोंको अपने कोमल स्पर्शसे खोलती हैं। उनका सौन्दर्य निखर जाता है, उनमेंसे सुगन्ध बिखर जाती है। श्री ज्योर्जने गुरुदेवके चरणकमलोंमें रह कर जो मधुसंचय किया वह कितना लाभकारी था! ऐसे अनेक ज्योर्ज गुरुदेवके सत्संगसे स्फूर्ति पाकर पुष्पवत् खिले हैं। ऐसा था गुरुदेवका रम्य जीवन । उनके जीवनमें प्रेमका चुम्बक था। आज कितने ही ज्योर्ज प्रकाश मांग रहे हैं। कौन अब उन्हें प्रकाश देगा? गुरुदेवकी असीम करुणा और दिव्यताका शब्दचित्र करनेके लिए मनमें तड़पन है, परन्तु अनुपम कवि-चित्रकारकी प्रतिभा कहांसे लाऊं? मैं मनकी बात कैसे कहूं? अन्तर्गतकी बात अली, सुन, । मुख थी मोपे न जात कही री।-चिदानन्द । जीवन-झलक आचार्य वल्लभसूरिजीका सांसारिक नाम छगनलाल था। आचार्यश्रीका जन्म कार्तिक शुक्ला द्वितीया (भाई दूज) विक्रम संवत् १९२७को गुजरात प्रान्तके बड़ौदा शहरमें हुआ था। उनके पिता सेठ दीपचन्दभाई बड़े धार्मिक संस्कारवाले थे तथा उनकी माता इच्छाबाई धर्मपरायणा एवं कोमल स्वभाववालो महिला थी। बडौदाका यह श्रीमाली परिवार अत्यन्त ही प्रतिष्ठित था। _छगन सहित चार भाई थे--हीराचन्द, खीमचन्द, छगनलाल (आचार्य वल्लभ) तथा मगनलाल । और तीन बहनें थीं- महालक्ष्मी, जमुना एवं रुक्मणी। माता-पिताके धार्मिक संस्कारोंकी छाप बालक छगन पर विशेष रूपसे पड़ी। छगन मातापिताका अत्यन्त ही लाडला था, परन्तु भाग्यकी निष्ठुरता कहें या कर्मका विधान, बालक छगनको अकेला छोड़कर पिताजी स्वर्गधाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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