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दिव्य जीवन
जब गुरुदेव हरजी ( जालोर जिला) पहुंचे तब श्री ज्योर्ज नामक अंग्रेज उनके दर्शनार्थ वहां आये । श्री ज्योर्ज योगिराज श्रीमद् शांतिसूरिजीके परम भक्त थे । वे गुरुदेवके गुणोंको सुनकर उनके पास आये थे । ज्योर्ज महोदय गुरुदेवका अभिवादन करके विनम्र वाणीमें कहा : आप मारवाड़ में पधारे हैं यह सुनकर मैं आपके दर्शनार्थ आया हूं ।
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' योगिराज से क्या संदेश लाए हो ? ' गुरुदेवने शान्त एवं प्रसन्न मुद्रामें श्री ज्योर्जको पूछा ।
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श्री ज्योर्ज मुस्कराते हुए बोले : उनका संदेश है, ॐ शान्ति और जगत्का कल्याण | मैं आपके चरणोंमें रहकर ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं । गुरुदेवने मधुर वाणीमें कहा : आपकी भावना सराहनीय है । परन्तु पंजाब में एक कालेजका उद्घाटन होनेवाला है इसलिए मुझे वहां पहुंचना जरूरी है । "
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ज्योर्ज महोदय जिज्ञासु थे । वे चरणकमलका मकरंद लेने पधारे थे । मधुर भावसे बोले : “ यदि आपको कष्ट न हो तो मैं आपके साथ कुछ दिन विहारमें रहकर और समय मिलने पर ज्ञानगोष्ठी करना चाहता हूँ । गुरुदेवन कहा : 'आप खुशीसे आइये। मुझे भी आप जैसे विद्वानोंका परिचय प्राप्त कर आनन्द होगा । "
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श्री ज्योर्ज जैन दर्शनके मर्मज्ञ थे । गुरुदेवने देखा कि उनमें एक अन्तज्योति जल रही है । उसे और प्रज्वलित करना है । यह प्रकाशकिरण यदि चमकेगी तो अन्धकार निश्चय ही दूर होगा । ज्ञानका प्रकाश ही मोहान्धकारको दूर कर सकता है । आज प्रकाशकी आवश्यकता है । अन्धकारमें भटकते हुए कितने ही मनुष्य प्रकाशकी खोज कर रहे हैं । गुरुदेवने श्री ज्योर्जको कहा : " यदि आप जैसे व्यक्ति योगिराजके सन्देशवाहक बन जायें तो जगत्को बहुत लाभ हो । "
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श्री ज्योर्ज बोले : " मेरी भावना तो यही है ।
'आपकी भावना श्रेष्ठ है ।
पूज्यश्रीने कहा :
श्री ज्योर्ज गुरुदेवके साथ कुछ दिन रहे। उन्होंने गुरुदेवसे जो प्राप्त किया, वह मधुसंचय था। वे भ्रमर बन कर आये थे.
हेतु । वे मत्रु प्राप्त कर अपने स्थानको वापस चले
गये ।
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- मधुसंचय करने
प्रश्न उठता है कि श्री ज्योर्ज आबू पर्वतकी
शान्त और आनन्दप्रद गोदसे गुरुदेव वल्लभकी शरणमें थोड़ेसे समयके लिये क्या लेने आये थे ?
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