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________________ दिव्य जीवन तथा बंधन है सांसारिक मायाकी बेडियां। बेडियोंमें बंधा जीवन कष्टप्रद तथा मृत्यु तुल्य है। मुक्त होने पर ही छुटकारा है। ___ आचार्यदेवने स्वयं खादी पहनी तथा अन्य मुनिराजोंको भी खादी एवं स्वदेशी अपनानेके लिये प्रेरित किया। आचार्यदेवकी कथनी और करनीमें कभी अन्तर नहीं रहा। __आचार्यश्री पूज्य महात्मा गांधी, महामना मदनमोहन मालवीय तथा महान् देशभक्त पंडित मोतीलालज नेहरूके सम्पर्कमें आये तथा स्वराज्य-आन्दोलनमें सक्रिय सहयोग देनेको जनताको प्रेरित किया। गुरुदेवने देशभक्तिसे युक्त भाषण अनेक स्थानों पर दिये। गांधीजीके मद्यनिषेधके आन्दोलनमें गुरुदेवका योगदान अत्यधिक प्रशंसनीय रहा। उनके अहिंसक आन्दोलनके वे प्रबल समर्थक थे। स्वराज्य-आन्दोलनका एक मधुर एवं प्रेरणास्पद संस्मरण है। आचार्य वल्लभकी पंजाबके अम्बाला शहरमें राष्ट्ररत्न पंडित मोतीलालजी नेहरूसे भेंट हुई। उस समय स्वदेशी आन्दोलनकी धूम मची हुई थी। पंडितजी विदेशी सिगरेट पीते थे। गुरुदेवने उनसे कहा : "आप देशको स्वतन्त्र करानेके लिये बाहर निकले हो, फिर इस विदेशी सिगरेटको क्यों पीते हो?" गुरुदेवके इस कथनसे पंडितजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सिगरेट न पीनेकी आम सभामें प्रतिज्ञा की। पंडित मोतीलालजीके उस समयके ये उद्गार आज भी सुजीवनकी प्रेरणा देते हैं : “ मैं अब तक अन्धकारमें भटक रहा था, एक जैन मुनिने मुझे प्रकाश दिखाया। ___गुरुदेवके सम्पूर्ण जीवनका चित्रपट मेरी आंखोंके फिल्मपट पर अंकित है। मैं देख रहा हूं आकाशमें इन्द्रधनुष । बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल-~इन सप्त रंगोंसे इन्द्रधनुष मनको लुभाता है। गुरुदेवका जीवनचित्र भी इन्द्रधनुषके समान रमणीय लग रहा है। इस इन्द्रधनुषमें भी सप्त रंग हैं : निर्भीकता, स्पष्टवादिता, तेजस्विता, सौम्यता, सज्जनता, विनम्रता एवं भव्यता। यह इन्द्रधनुष मेरे मनके आकाशमें खिल गया है। मेरी आंखोंमें बस गया है। गुरुदेवके इन्द्रधनुषी जीवनका मधुर आकर्षण ऐसा था जो उनकी ओर अनायास खींचता था। इस खिंचावमें कोई जादू या चमत्कार नहीं था। जादू और चमत्कार क्षणिक होते हैं। उनमें सहज आकर्षण था। इस सम्बन्धमें एक मनमोहक प्रसंग यहां प्रस्तुत करता हूं। ४. आचार्य श्री विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ, पृष्ठ ७१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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