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प्रकाशकी ओर __चांदनी रातमें चन्द्रप्रकाश सरिताकी लहरों पर नाच रहा था। नीलिमाम चांदी घुल गई थी। सरिता पर मानो चन्द्रका धवल हास छिटक गया हो। यह थी चन्द्रप्रकाशकी माया ।
प्रभातके समय जब उषाने कुंकुम बिखेरा, तब अरुणोदय हुआ। रविप्रकाशने धरतीका श्रृंगार किया। ओस बिन्दु चमक उठे, फूलोंके मुख खुल गये और सुगन्ध ही सुगन्ध बिखर गई। यह था रविप्रकाशका प्रभाव।।
अन्धकारको दूर करनेके लिये प्रकाशकी आवश्यकता रहती है। प्रकाश फैलानेवाले रवि, चन्द्र हैं---दीपकका प्रकाश भी अन्धकारको हटाने के लिये सशक्त' है, ये जहां रहेंगे, प्रकाश रहेगा ही। प्रकाश ही उनका जीवन है। उनका जीवन और प्रकाश पर्यायवाची बन गये हैं।
जिनका जीवन ही प्रकाश है, वे ही इस विश्वमें प्रकाश फैलाते हैं। वे जहां जाते है, रवि, चन्द्र एवं दीपशिखाके समान प्रकाश छिटकाते हैं। विश्वको महान् विभूतियोंका जीवन-प्रकाश, अन्धकारको दूर करने में सफल हुआ है। यदि ये मानव-ज्योतियां नहीं होती तो विश्व में कितना अन्धकार होता!
मानवजीवनका प्रकाश है मानवता। मानवता रूपी किरणमें सप्त रंग हैं : करुणा, उदारता, कोमलता, प्रेमभावना, सहिष्णुता, त्यागवृत्ति एवं सुशीलता। यह श्वेत किरण इन सात रंगोंको अपने में रमाये हुये हैं। १. झिलमिल प्रकाश, मेरे प्रकाश,
अगजग भरमें भरते प्रकाश, दृगको चुम्बन करते प्रकाश, अन्तरमें मधु झरते प्रकाश, झिलमिल प्रकाश तो जीवनमें, छम छम नर्तन करता प्रेयसी।
- गीतांजलि : विश्वकवि रवीन्द्र ; हिन्दी अनुवाद : श्री भवानीप्रसाद तिवारी।
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