________________
जहाँ आकृति से भी मनुष्य हो, प्रकृतिसे भी, वहीं मनुष्यताका निवास होता है। ऐसी मानवता पैसेसे, सत्तासे, बल तथा बुद्धिसे नहीं मिलती, ऐसी मानवता मिलती है। देश, वेश, धर्म, सम्प्रदाय, जाति, कौम, प्रान्त, भाषा आदिकी दीवारोंको लांघकर दुनियाके हर मानवके साथ मानवताका व्यवहार करनेसे ही ।
- श्री विजयवल्लभसूरिजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org