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________________ ८ गुरुदेवके व्याख्यानों और प्रवचनोंमें त्याग और सेवाका स्वर गूंजता था । कितने ही भाग्यशालियोंने उनके करकमलों द्वारा दीक्षा ली। उनकी निश्रा में अनेक प्रतिष्ठायें तथा अंजनशलाकायें सम्पन्न हुई । गुरुदेवकी अभिलाषा थी कि सम्प्रदायका भेदभाव भूलकर सभी भगवान महावीरके झंडेके नीचे एकत्रित होकर अहिंसाधर्मका प्रचार करें, सब मिलकर समाजोत्थान और शिक्षा क्षेत्रमें काम करें। गुरुदेवने अनेक राजा-महाराजाओं को भी प्रतिबोध दिया था । गुरुदेवका शिक्षाप्रेम, समाजसेवा, साहित्यसाधना आदि गुणोंका विद्वान लेखकने विशेष वर्णन करके किताबकी उपयोगिता बढ़ा दी है । गुरुदेवकी काव्यकला तथा उनके प्रवचनोंका सार 'दिव्य जीवन ' में अंकित है । उनके साहित्यका गम्भीर विवेचन करके लेखकने उनकी जीवनकिताबके वे पृष्ठ खोले हैं जो अभी तक बन्द थे, अतः मैं उन्हें हृदयसे धन्यवाद तथा बधाई देता हूं । गुरुदेवका सारा जीवन दिव्य था, उनका जीवन प्रकाश ही था । मुझे विश्वास है कि इस दिव्य प्रकाशसे व्यक्ति और समाजको रोशनी मिलेगी । आचार्य समुद्रसूरि गोडीजीका उपाश्रय पायधुनी, बम्बई ३ संवत् २०२७, आषाढ कृष्णा ९ ( दिनांक २८-६-७० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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