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________________ प्रस्तावना 'दिव्य जीवन' पुस्तक आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजको जीवनकथा है, जिसको विद्वान लेखक प्रो० जवाहरचन्द्र पटनी, एम० ए०,ने परिश्रमसे लिखी है। श्री पटनोजीकी गुरुभक्तिका यह अमर फूल है, जिसको सुगन्ध सब जगह फैलेगी। गुरुदेवका जीवन व्यापक और विशाल था। उस महान जीवनसे अनेक व्यक्तियोंको प्रेरणा मिली है। अनेक पथभूलोंको गुरुदेवने प्रकाश दिखाया था और सत्पथ पर चलाया था। इस भौतिक वैभवके युगमें आत्मिक शान्तिका सन्देश अत्यन्त ही आवश्यक है । गुरुदेवने कहा था : “भाग्यशालियों! तुम्हारी कारें, तुम्हारे बंगले, तुम्हारी शानशौकत, सब कुछ यहां ही रहने वाला है, इसलिये सेवामार्ग पर चलो।" मुझे इस बात को प्रसन्नता है कि प्रो० पटनीने युगवीर आचार्य भगवंतके क्रांतिकारी सन्देशको यथार्थ रूपमें रखनेका सत्प्रयास किया है। गुरुदेवने शाकाहार, मद्यनिषेध आदि क्षेत्रोंमें जो महान् कार्य किया है, उसका संक्षिप्त किन्तु साररूप वर्णन 'दिव्य जीवन में हुआ है। गुरुदेवने जीवनभर समस्त मानवसमुदायमें अहिंसाका सन्देश फैलाया। __ वे सम्प्रदायको सीमामें बन्द नहीं रहे, उनका क्षेत्र सारा मानवसमाज था। उन्होंने समाज और व्यक्तिको ऊंचा उठाने के लिये सेवाधर्मका उपदेश दिया। प्रभुसेवा और समाज-सेवाको गुरुदेवने उन्नतिका सोपान कहा। गुरुदेवने राष्ट्रको कुव्यसनोंसे बचाने के लिये जगह जगह प्रभावशाली भाषण दिये। कुव्यसनोंसे मनुष्य पतनको ओर जाता है, फलस्वरूप राष्ट्र भी नीचे गिरता है। गुरुदेवको देशभक्ति विशाल थी। उन्होंने आजादीको स्वर्ग तथा गुलामीको नरक कहा। उनके प्रवचनोंसे जनतामें देशकी आजादीके लिये जागृति आई। गुरुदेवने स्वयं खादी पहनी और दूसरोंको खादी पहनने के लिए प्रोत्साहित किया था। गुरुदेवका जीवन एक देशभक्त संतको जीवन था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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