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________________ 'संथारा' और अहिंसा' . हिंसा का मतलब है-प्रमाद या रागद्वेष या आसक्ति । उसका त्याग ही अहिंसा है। जैन ग्रन्थों में प्राचीन काल से चली आने वाली अात्मघात की प्रथाओं का निषेध किया है। पहाड़ से गिरकर, पानी में डूबकर, जहर खाकर आदि प्रथाएँ मरने की थीं और हैं-धर्म के नाम पर भी और दुनयबी कारणों से भी । जैसे पशु आदि की बलि धर्म रूप में प्रचलित है वैसे ही आत्मबलि भी प्रचलित रही । और कहीं-कहीं अब भी है; खासकर शिव या शक्ति के सामने । एक तरफ से ऐसी प्रथाओं का निषेध और दूसरी तरफ से प्राणान्त अनशन या संथारे का विधान । यह विरोध जरूर उलझन में डालने वाला है पर भाव समझने पर कोई भी विरोध नहीं होता। जैन धर्म ने जिस प्राणनाश का निषेध किया है वह प्रमाद या श्रासक्ति पूर्वक किये जाने वाले प्राणनाश का ही। किसी ऐहिक या पारलौकिक संपत्ति की इच्छा से, कामिनी की कामना से और अन्य अभ्युदय की वांच्छां से धर्मबुध्या तरह-तरह के श्रात्मवध होते रहे हैं। जैन धर्म कहता है वह यात्मवध हिंसा है। क्योंकि उसका प्रेरक तत्त्व कोई न कोई आसक्त भाव है ! प्राणान्त अनशन और संथारा भी यदि उसी भाव से या डर से या लोभ से किया जाय तो वह हिंसा ही है। उसे जैन धर्म करने की आज्ञा नहीं देता। जिस प्राणान्त अनशन का विधान है, वह है समाधिमरण । जब देह और आध्यात्मिक सद्गुण-संयम- इनमें से एक ही की पसंदगी करने का विषम समय आ गया तब यदि सचमुच संयमप्राण व्यक्ति हो तो वह देह रक्षा की परवाह नहीं करेगा। १ जैन शास्त्रों में जिसे संथारा या समाधिमरण कहा गया है, उसके संबन्ध में लिखते हुए हमारे देश के सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् डा. एस. राधाकृष्णन ने अपने 'इंडियन फिलासफी' नामक ग्रन्थ में 'Suicide' (जिसका प्रचलित अर्थ 'आत्मघात' किया जाता है) शब्द का व्यवहार किया है। सन् १६४३ में जब श्री भँवरमल सिंधी ने जेल में यह पुस्तक पढ़ी तो इस विषय पर वास्तविक शास्त्रीय दृष्टि जानने को उत्सुकता हुई और उन्होंने प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी को एक पत्र लिखकर अपनी जिज्ञासा प्रकट की; उसके उत्तर में यह पत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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