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________________ दबाते आए हैं, अकबर भाईको श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते हैं। यह जानते हुए भी कि अकबर भाई मुसलमान हैं, कट्टर हिन्दू तक उनका आदर करते हैं । सब उन्हें 'नन्हें बापू' कहते हैं । अकबर भाईकी समाजको सुधारनेकी सूझ भी ऐसी अच्छी और तीव्र है कि वे जो कुछ कहते हैं या सूचना देते हैं, उसमें न्यायकी ही प्रतीति होती है । इस प्रदेशकी अशिक्षित और असंस्कारी जातियोंके हजारों लोग इशारा पाते ही उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाते हैं और उनकी बात सुनते हैं। अकबर भाईने गाँधीजीके पास रह कर अपने आपको बदल डाला हैसमझपूर्वक और विचारपूर्वक । गाँवोंमें और गाँवोंके प्रश्नोंमें उन्होंने अपने श्रापको रमा दिया है। ऊपर जिन तीन व्यक्तियोंका उल्लेख किया गया है, वह केवल यह सूचित करनेके लिए कि यदि समाजको बदलना हो और निश्चित रूपसे नए सिरेसे गढ़ना हो, तो ऐसा मनोरथ रखनेवाले सुधारकोंको सबसे पहले अपने आपको बदलना चाहिए। यह तो श्रात्म-सुधारकी बात हुई । अब यह भी देखना चाहिए कि युग कैसा अाया है। हम जैसे हैं, वैसेके वैसे रहकर अथवा परिवर्तनके • कुछ पैबन्द लगाकर नये युगमें नहीं जी सकते। इस युगमें जीनेके लिए इच्छा और समझपूर्वक नहीं तो आखिर धक्के खाकर भी हमें बदलना पड़ेगा । समाज और सुधारक दोनोंकी दृष्टि के बीच केवल इतना ही अन्तर है कि रूढ़िगामी समाज नवयुगकी नवीन शक्तियोंके साथ घिसटता हुअा भी उचित परिवर्तन नहीं कर सकता, ज्योंका त्यों उन्हीं रूढ़ियोंसे चिपटा रहता है और समझता है कि आजतक काम चला है तो अब क्यों नहीं चलेगा? फिर अज्ञानसे या समझते हुए भी रूढ़िके बन्धनवश सुधार करते हुए लोकनिन्दासे डरता है, जब कि सच्चा सुधारक नए युगकी नई ताकतको शीघ्र परख लेता है और तदनुसार परिवर्तन कर लेता है। वह न लोक-निन्दाका भय करता है, न निर्बलतासे झुकता है। वह समझता है कि जैसे ऋतुके बदलनेपर कपड़ोंमें फेरफार करना पड़ता है अथवा वय बढ़नेपर नए कपड़े सिलाने पड़ते हैं, वैसे ही नई परिस्थितिमें सुखसे जीनेके लिए उचित परिवर्तन करना ही पड़ता है और वह परिवर्तन कुदरतका या और किसी वस्तुका धक्का खाकर करना पड़े, इससे अच्छा तो यही है कि सचेत होकर पहलेसे ही समझदारीके साथ कर लिया जाए। यह सब जानते हैं कि नये युगने हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्रमें पाँव जमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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