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________________ जैन धर्म और दर्शन में संक्षेप रूप से नैयायिक सम्मत सोलह पदार्थ और वैशेषिक सम्मत सात पदार्थों का विवेचन किया। दोनों ने अपने-अपने मंतव्य को सिद्ध करते हुए तत्कालीन विरोधी मन्तव्यों का भी जहां-तहां खण्डन किया है। उपाध्यायजी ने भी इसी सरणी का अवलंबन करके जैन तर्क भाषा रची। उन्होंने मुख्यतया प्रमाणनयतत्त्वालोक के सूत्रों को ही जहां संभव है आधार बनाकर उनकी व्याख्या अपने ढंग से की है । व्याख्या में खासकर पंचज्ञान निरूपण के प्रसंग में सटीक विशेषावश्यक भाष्य का ही अवलंबन है। बाकी के प्रमाण और नयनिरूपण में प्रमाणनयतत्त्वालोक की व्याख्या-रत्नाकर का अवलंबन है अथवा यों कहना चाहिए कि पंचज्ञान और निक्षेप की चर्चा तो विशेषावश्यक भाष्य और उसकी वृत्ति का संक्षेपमात्र है और परोक्षप्रमाणों की तथा नयों की चर्चा प्रमाणनयतत्त्वालोक की व्याख्या-रत्नाकर का संक्षेप है। उपाध्यायजी जैसे प्राचीन नवीन सकल दर्शन के बहुश्रत विद्वान् की कृति में कितना ही संक्षेप क्यों न हो, पर उसमें पूर्वपक्ष तथा उत्तरपक्ष रूप से किंवा वस्तु विश्लेषण रूप से शास्त्रीय विचारों के अनेक रंग पूरे जाने के कारण यह संक्षिप्त ग्रन्थ भी एक महत्त्व की कृति बन गया है। वस्तुतः जैनतर्क भाषा का यह आगमिक तथा तार्किक पूर्ववर्ती जैन प्रमेयों का किसी हद तक नव्यन्याय की परिभाषा मे विश्लेषण है तथा उनका एक जगह संग्रह रूप से संक्षिप्त पर विशद वर्णन मात्र है । प्रमाण और नेय की विचार परंपरा श्वेतांबरीय ग्रंथों में समान है, पर निक्षेपों की चर्चा परम्परा उतनी समान नहीं । लघीयस्त्रय में जो निक्षेप निरूपण है और उसकी विस्तृत व्याख्या न्यायकुमुद चन्द्र में जो वर्णन है, वह विशेषावश्यक भाष्य की निक्षेप चर्चा से इतना भिन्न अवश्य है जिससे यह कहा जा सके कि तत्त्व में भेद न होने पर भी निक्षेपों की चर्चा दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों परम्परा में किसी अंश में भिन्न रूप से पुष्ट हुई जैसा कि जीवकांड और चौथे कर्मग्रन्थ के विषय के बारे में कहा जा सकता है। उपाध्यायजी ने जैन तर्क भाषा के बाह्य रूप की रचना में लघीयस्त्रय का अवलंबन किया जान पड़ता है, फिर भी उन्होंने अपनी निक्षेप चर्चा तो पूर्णतया विशेषावश्यक भाष्य के आधार से ही की है। ई० १६३६] [जैन तर्कभाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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