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संपादकीय निवेदन
विद्वत्रं व नृपवं च नैव तुल्यं कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥
विभूतिपूजा संसारके प्रत्येक देशके लिये एक आवश्यक कार्य है । समय समय पर देशकी महान् विभूतियों का आदर-सत्कार होता ही रहता है, और यह प्रजाकी जागरूकता और जीवनविकासका चिह्न है ।
जिस विभूतिका सन्मान करने के उद्देश्य से हम यह ग्रन्थरत्न प्रकट कर रहे हैं वह केवल जैनोंके लिए आदरणीय हैं, या सिर्फ गुजरातकी श्रद्धेय व्यक्ति है, वैसा नहीं है; वह तो सारे भारतवर्षकी विद्याविभूति है । और उसका सन्मान भारतकी भारतीदेवीका सन्मान है ।
पण्डित श्री सुखलालजी संघवी ता. ८-१२-५५ को अपने जीवन के ७५ वर्ष पूर्ण करनेवाले थे । अतएव सारे देशकी ओरसे उनका सन्मान करनेके विचार से अहमदाबाद में ता. ४-९-५५ के दिन ' पाण्डत सुखलालजी सन्मान समिति ' का संगठन किया गया, और निम्न प्रकार सम्मान की योजना की गई :---
(१) पण्डित श्री. सुखलालजीके सन्मानार्थ अखिल भारतीय पैमाने पर एक सन्माननिधि एकत्रित करना ।
(२) उस निधिमेंसे पण्डित सुखलालजीके लेखों का संग्रह प्रकाशित करना ।
(३) उस निधि से आगामी दिसम्बर मासके बाद, बम्बई में, उचित समय पर, पण्डित सुखलालजीका एक सन्मान - समारोह करना (४) उपर्युक्त सन्मान - समारोह के समय, अवशिष्ट सन्माननिधि पण्डितजीको अर्पण करना |
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