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________________ चौथे कर्मग्रन्थ के कुछ विशेष स्थल ३४७ चार गुणस्थान माने हैं । सो किस अपेक्षा से ? इसका प्रमाण पूर्वक खुलासा । पृ००-८८ । जब मरण के समय ग्यारह गुणस्थान पाए जाने का कथन है, तब विग्रहगति में तीन ही गुणस्थान कैसे माने गए ? इसका खुलासा । पृ० ८६ । स्त्रीवेद में तेरह योगों का तथा वेद सामान्य में बारह उपयोगों का और नौ गुणस्थानों का जो कथन है, सो द्रव्य और भावों में से किस-किस प्रकार के वेद को लेने से घट सकता है ? इसका खुलासा । पृ० - ६७, नोट । उपशमसम्यक्त्व के योगों में श्रदारिकमिश्रयोग का परिगणन है, सो किस तरह सम्भव है ? इसका खुलासा । पृ०-६८ । मार्गणात्रों में जो अल्पबहुत्व का विचार कर्मग्रन्थ में है, वह आगम आदि किन प्राचीन ग्रन्थों में है ? इसकी सूचना । पृ० - ११५, नोट । काल की अपेक्षा क्षेत्र की सूक्ष्मता का सप्रमाण कथन । पृ० - १७७ नोट | शुक्ल, पद्म और तेजोलेश्यावालों के संख्यातगुण अल्प - बहुत्व पर शङ्कासमाधान तथा उस विषय में टबाकार का मन्तव्य । पृ० - १३०, नोट | - तीन योगों का स्वरूप तथा उनके बाह्य श्राभ्यन्तर कारणों का स्पष्ट कथन और योगों की संख्या के विषय में शङ्का समाधान तथा द्रव्यमन, द्रव्यवचन और शरीर का स्वरूप | पृ० - १३४, । सम्यक्त्व सहेतुक है या निर्हेतुक ? क्षायोपशमिक आदि भेदों का आधार, औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व का आपस में अन्तर क्षायिक सम्यक्त्व की उन दोनों से विशेषता, कुछ शङ्का समाधान, विपाकोदय और प्रदेशोदय का स्वरूप, क्षयोपशम तथा उपशम-शब्द की व्याख्या, एवं अन्य प्रासङ्गिक विचार । पृ०--१३६ । अपर्याप्त अवस्था में इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण होने के पहिले चक्षुर्दर्शन नहीं माने जाने र चक्षुर्दर्शन माने जाने पर प्रमाण पूर्वक विचार । पृ० – १४१ । वक्रगति के संबन्ध में तीन बातों पर सविस्तर विचार - ( १ ) वक्रगति के विग्रहों की संख्या, (२) वक्रगति का काल-मान और (३) वक्रगति में अनाहारकत्व का काल-मान | पृ० १४३ । अवधि दर्शन में गुणस्थानों की संख्या के विषय में पक्ष-भेद तथा प्रत्येक पक्ष का तात्पर्य अर्थात् विभङ्ग ज्ञान से अवधिदर्शन का भेदाभेद । पृ० १४६ । श्वेताम्बर - दिगम्बर संप्रदाय में कवलाहार विषयक मतभेद का समन्वय । पृ० - १४८ । केवल ज्ञान प्राप्त कर सकने वाली स्त्रीजाति के लिए श्रुतज्ञान विशेष का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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