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जैन धर्म और दर्शन नियत हेतु क्या है; प्रवचन-श्रवण, भगवत्पूजन आदि जो-जो बाह्य निमित्त माने जाते हैं, वे तो सम्यक्त्व के नियत कारण हो ही नहीं सकते; क्योंकि इन बाह्य निमित्तों के होते हुए भी अभव्यों की तरह अनेक भव्यों को सम्यक्त्व-प्राप्ति नहीं होती। परन्तु इसका उत्तर इतना ही है कि सम्यक्त्व-परिणाम प्रकट होने में नियत कारण जीव का तथाविध भव्यत्व-नामक अनादि पारिणामिक-स्वभाव विशेष ही है । जब इस परिणामिक भव्यत्वका परिपाक होता है, तभी सम्यक्त्व-लाभ होता है। भव्यत्व परिणाम, साध्य रोग के समान है। कोई साध्य रोग, स्वयमेव (बाह्य उपाय के बिना ही) शान्त हो जाता है। किसी साध्य रोग के शान्त होने में वैद्य का उपचार भी दरकार है और कोई साध्य रोग ऐसा भी होता है, जो बहुत दिनों के बाद मिटता है। भव्यत्व-स्वभाव ऐसा ही है । अनेक जीवों का भव्यत्व, बाह्य निमित्त के बिना ही परिपाक प्राप्त करता है । ऐसे भी जीव हैं, जिनके भव्यत्वस्वभाव का परिपाक होने में शास्त्र-श्रवण आदि बाह्य निमित्तों की आवश्यकता पड़ती है। और अनेक जीवों का भव्यत्व परिणाम दीर्घ-काल व्यतीत हो चुकने पर, स्वयं ही परिपाक प्राप्त करता है । शास्त्र-श्रवण, अर्हत्पूजन आदि जो बाह्य निमित्त हैं, वे सहकारीमात्र हैं। उनके द्वारा कभी-कभी भव्यत्व का परिपाक होने में मदद मिलती है, इससे व्यवहार में वे सम्यक्त्व के कारण माने गए हैं और उनके आलम्बन की आवश्यकता दिखाई जाती है। परन्तु निश्चय-दृष्टि से तथाविधभव्यत्व के विपाक को ही सम्यक्त्व का अव्यभिचारी (निश्चित) कारण मानना चाहिए। इससे शास्त्र-श्रवण, प्रतिमा-पूजन आदि बाह्य क्रियाओं की अनैकान्तिकता, जो अधिकारी भेद पर अवलम्बित है, उसका खुलासा हो जाता है। यही भाव भगवान् उमास्वति ने 'तन्निसर्गादधिगमाद्वा-तत्त्वार्थ-अ० १, सूत्र ३ से प्रकट किया है। और यही बात पञ्चसंग्रह-द्वार १, गा०८ की मलयगिरि- टीका में भी है।
(२) सम्यक्त्व गुण, प्रकट होने के आभ्यन्तर कारणों की जो विविधता है, वही क्षायोपशमिक आदि भेदों का आधार है-अनन्तानुबन्धि-चतुष्क और दशनमोहनीय-त्रिक, इन सात प्रकृतियों का क्षयोपशम, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व का; उपशम, औपशमिकसम्यक्त्वका और क्षय, क्षायिकसम्यक्त्व का कारण है । तथा सम्यक्त्व से गिरा कर मिथ्यात्व की ओर झुकानेवाला अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय, सासादनसम्यक्त्व का कारण और मिश्रमोहनीय का उदय, मिश्रसम्यक्त्व का कारण है। औपशमिकसम्यक्त्व में काललब्धि आदि अन्य क्या २ निमित्त अपेक्षित हैं और वह किस-किस गति में किन-किन कारणों से होता है, इसका विशेष वर्णन तथा क्षायिक और क्षायोपशमिकसम्यक्त्व का वर्णन क्रमशः--तत्त्वार्थ
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