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________________ २८८ जैन धर्म और दर्शन योगसंबन्धी विचार गुणस्थान और योग के विचार में अन्तर क्या है ? गुणस्थान के किंवा अज्ञान व ज्ञान-की भमिकाओं के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि प्रात्मा का प्राध्यास्मिक विकास किस क्रम से होता है और योग के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि मोक्ष का साधन क्या है ? अर्थात् गुणस्थान में आध्यात्मिक विकास के क्रम का विचार मुख्य है और योग में मोक्ष के साधन का विचार मुख्य है। इस प्रकार दोनों का मुख्य प्रतिपाद्य तत्त्व भिन्न-भिन्न होने पर भी एक के विचार में दूसरे की छाया अवश्य आ जाती है, क्योंकि कोई भी पारमा मोक्ष के अन्तिमअनन्तर या अव्यवहित - साधन को प्रथम ही प्राप्त नहीं कर सकता, किन्तु विकास के क्रमानुसार उन्तरोत्तर सम्भवित साधनों को सोपान-परम्परा की तरह प्राप्त करता हुआ अन्त में चरम साधन को प्राप्त कर लेता है । अतएव योग के-मोक्षसाधनविषयक विचार में श्राध्यात्मिक विकास के क्रम की छाया आ ही जाती है। इसी तरह आध्यात्मिक विकास किस क्रम से होता है, इसका विचार करते समय आत्मा के शुद्ध, शुद्धतर, शुद्धतम परिणाम, जो मोक्ष के साधनभूत हैं, उनकी छाया भी आ ही जाती है । इसलिए गुणस्थान के वर्णन-प्रसंग में योग का स्वरूप संक्षेप में दिखा देना अप्रासङ्गिक नहीं है। योग किसे कहते हैं ?-आमा का धर्म-व्यापार मोक्ष का मुख्य हेतु अर्थात् उपादानकारण तथा बिना विलम्ब से फल देनेवाला हो, उसे योग ' कहते हैं । ऐसा व्यापार प्रणिधान आदि शुभ भाव या शुभभावपूर्वक की जानेवाली क्रिया २ है। पातञ्जलदशन में चित्त की वृत्तियों के निरोधकों योग ३ कहा है। उसका भी वही मतलब है, अर्थात् ऐसा निरोध मोक्ष का मुख्य कारण है, क्योंकि उसके साथ कारण और कार्य-रूप से शुभ भाव का अवश्य संबंध होता है । १ 'मोक्षेण योजनादेव, योगो ह्यत्र निरुच्यते । लक्षणं तेन तन्मुख्यहेतुव्यापारतास्य तु ॥१॥' -योगलक्षण द्वात्रिंशिका । २ 'प्रणिधानं प्रवृत्तिश्च, तथा विघ्नजयस्त्रिधा। सिद्धिश्च विनियोगश्च, एते कर्मशुभाशयाः ॥१०॥' 'एतैराशययोगैस्तु, विना धर्माय न क्रिया । प्रत्युत प्रत्यपायाय, लोभक्रोधक्रिया तथा ॥१६॥" -योगलक्षणद्वात्रिंशिका । ३ 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।---पातञ्जलसूत्र, पा० १, सू० २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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